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सता रहा कोरोना का भय, घबराहट ने शुरू कराई नींद की गोलियां

कोरोना का साइड इफेक्ट : मनोचिकित्सक के पास आ रहे मामले, विद्यार्थियों के सामने कॅरियर का संकट  

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सता रहा कोरोना का भय, घबराहट ने शुरू कराई नींद की गोलियां

सता रहा कोरोना का भय, घबराहट ने शुरू कराई नींद की गोलियां

बृजमोहन आचार्य

बीकानेर. कोरोना ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। इसका रोजगार, दैनिक गतिविधियां, नौकरी, पढ़ाई और जॉब के लिए तैयारी करने वाले युवाओं पर पड़ रहा है। सालभर बंदिशों में गुजारने के बाद कुछ समय पहले सब कुछ सामान्य होने लगा, लेकिन अब फिर से वैसी ही पाबंदियों ने युवाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इससे डिप्रेशन में आए युवा नींद और नशे की गोलियां खाने लगे है। एेसे कई मामले मनोचिकित्सकों तक भी पहुंच रहे है।

प्रतिदिन दस मरीजों का पंजीकरण

वर्तमान में मानसिक रोग अस्पताल के आउटडोर में रोजाना 80 से 100 मरीजों का पंजीकरण हो रहा है। इनमें दस से पन्द्रह मरीज कोरोना के भय से पीडि़त होकर आ रहे हैं। इस प्रकार के मरीजों को नींद नहीं आ रही है और रह वक्त घबराहट की शिकायत रहती है। हालांकि इस प्रकार के मरीज पहले बहुत कम आते थे, लेकिन इन दो माह में अधिक आने लगे हैं।

२५ से ४५ वर्ष के अधिक मरीज

आउटडोर में जिस उम्र के मरीज आ रहे हैं, उन्हें देखकर चिकित्सक भी हैरान है। इस समय २५ से लेकर ४५ वर्ष आयु वर्ग के मरीज ही ज्यादा आ रहे हैं। इस वर्ग पर बेरोजगारी और पढ़ाई का तनाव अधिक है। चिकित्सक दवा देकर समझा भी रहे हैं, लेकिन कोरोना का भय उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है।

दिनचर्या बदली और मानसिक संतुलन बिगड़ा

कोरोना काल में घरों में रहने से चोरी-छिपे नशा करने वालों की दिनचर्या भी बदल गई है। ऐेसे में उनका मानसिक संतुलन बिगडऩे लगा है। न तो उन्हें पर्याप्त नींद आ रही है और न ही भूख ज्यादा लग रही है। इस प्रकार के मरीज भी मानसिक रोग अस्पताल में पहुंच रहे हैं और चिकित्सक से वैकल्पिक दवा लिख लिखने को कहते हैं।

चिकित्सक की सलाह के बिना दवा न लें

मानसिक रोग अस्पताल में कोरोना से प्रभावित मरीज आने लगे हैं। इनमें विद्यार्थियों विशेषकर छात्राएं भी शामिल हैं। इसके अलावा २५ से ४५ आयु वर्ग के मरीज अधिक आ रहे हैं, उन्हें अपने कॅरियर की चिंता अधिक है। नियमित दवा की आवश्यकता वाले पुराने मरीज कम आने लगे हैं। ऐसे में इस प्रकार के मरीजों को भी दिक्कत अधिक होगी। अगर किसी को नींद की शिकायत है और भूख नहीं लग रही है तो वे चिकित्सक के बिना बताए दवाई न लें।

डॉ. हरफूलसिंह विश्नोई, मानसिक रोग विशेषज्ञ, पीबीएम अस्पताल

केस : ०१

सुनीता (बदला हुआ नाम) एक साल से इस बात को लेकर तनाव में है कि उसने चिकित्सक बनने के उद्देश्य से पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन पढ़ाई अब बेपटरी हो गई है। कोरोना के कारण कोचिंग सेंटर बंद हो गए और अन्य शिक्षण संस्थाएं भी नहीं खुल रही हैं। ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन वह इतनी समझ नहीं आ रही है। इस वजह से उसकी नींद उड़ गई है। घबराटह होने लगी है और मन में भय घर कर गया है। इस वजह से उसने नींद की गोलियां लेनी शुरू कर दी।

केस : ०२

सरोज (बदला हुआ नाम) अपने घर से दूर किराए का कमरा लेकर पढ़ाई करने लगी। शुरुआत में तो पढ़ाई सही चल रही थी, लेकिन कोरोना के आतंक ने सब कुछ मटियामेट कर दिया। हर वक्त भविष्य की चिंता सताती रहती है। चिकित्सक की सलाह लिए बिना ही घहराबट दूर होने की दवा शुरू कर दी। अब घर वालों को बताए बिना ही चिकित्सक के पास आने लगी और अपनी कमजोरी तथा तनाव बताकर दवा लेने लगी।

केस : ०३

सोहनलाल लंबे समय से नशा करता है। कभी भांग तो कभी डोडा-पोस्त लेता है। यह नहीं मिलता तो नशे की गोलियां लेता है। लॉकडाउन के बाद से वह बेचैन रहने लगा है। वह चोरी-छिपे नशा करता है। इसका घर वालों को मालूम नहीं है। अभी प्रशासन की बंदिश के चलते घर से नहीं निकल रहा है। नशे की वस्तुएं नहीं मिल रही हैं। वह घर पर भी बताना नहीं चाहता है। इसलिए बेचैन एवं सुस्त रहने लगा है। मानसिक चिकित्सक के पास आया और हकीकत बताई।