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सारी दुनिया का बोझा हम उठाते…अब इनका कौन उठाए

-यात्रीभार नहीं होने से कुलियों को नहीं मिल रहा काम  

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सारी दुनिया का बोझा हम उठाते...अब इनका कौन उठाए

सारी दुनिया का बोझा हम उठाते...अब इनका कौन उठाए

अतुल आचार्य-

बीकानेर. सन 1983 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म कुली का गाना 'सारी दुनिया का बोझ हम उठाते है...के बोल रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान उठाने वाले कुली का चित्र आंखों के सामने ला देते है। यह कुली इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहे है। पिछले साल लम्बे समय तक ट्रेने बंद रहने से कुलियों की हालत खराब चल रही थी। कुछ ट्रेने चली इसी बीच इस साल फिर कोरोना की दूसरी लहर के चलते लॉकडाउन लग गया। अब इक्का-दुक्का ट्रेन स्टेशन से गुजरती भी है तो यात्रीभार कम होने से उन्हें काम नहीं मिलता। कुछ कोरोना के डर से भी लोग अपना बैग, सूटकेस आदि दूसरे से उठवाने से कतराते है।

टे्रनों में यात्री संख्या कम होने और लोग कम से कम सामान लेकर यात्रा कर रहे होने के चलते कुली बेरोजगार हो गए है। वह रोजाना अपने लाल रंग के कुर्ते वाली ड्रेस पहनकर कंधे पर बिल्ला लगाकर इस उम्मीद के साथ स्टेशन पर आते है कि कोई यात्री सामान उठवाएगा तो उसे दो पैसे की मजदूरी मिलेगी। परन्तु अधिकांश कुली निराश होकर ही शाम को वापस घर लौटते है। एेसे में आधे से ज्यादा कुली तो स्टेशन पर आते ही नहीं है। उनके लिए परिवार पालना मुश्किल हो गया है। लॉकडाउन के चलते बाहर भी कोई काम या मजदूरी कार्य नहीं मिलता।

चले गए गांव

रेलवे स्टेशन पर बैठे कुलियों ने बताया की बीकानेर स्टेशन पर रजिस्टर्ड 40 कुली है। इनमें से कई कुली अब अपने गांव चले गए। स्टेशन पर महज 12 कुली ही रह गए है। रोजगार के संकट के चलते यहां से कई कुली वापस अपने-अपने गांव चले गए है। लॉकडाउन के चलते अभी ट्रेनों का संचालन भी कम है। यात्रीभार कम होने से कमाई नहीं हो पा रही है। ना ही कोई आर्थिक सहायता मिली है। तो ऐसी स्थिति में वह यहां रहकर करें भी तो क्या।

चार दिन से नहीं कमाई

बीकानेर रेलवे स्टेशन के बाहर 42 नंबर बिला लगाए पेड़ की छांव में बैठे कुली जाकिर हुसैन ने बताया की वह सुबह 4 से 5 बजे के बीच स्टेशन पर आता है। पहले रोजाना 250 से 300 रुपए की कमाई हो जाती थी। अब पिछले तीन- चार दिन से पचास रुपए की आमदनी भी नहीं हो पा रही है। ऐसे में घर कैसे चलाएं। इस स्थिति में ना ही किसी का आर्थिक सहयोग मिल रहा है और ना ही किसी तरह के राशन किट की सहायता।

यात्री खुद ही उठाते है सामान

अभी कम ट्रेनों का संचालन हो रहा है। जिन ट्रेनों का संचालन हो रहा है, उनमें भी कम ही लोग सफर कर रहे हैं। ट्रेनों से जो सफर कर रहे हैं वह भी अपना सामान खुद ही उठा रहे हैं। कोरोना के चलते लोग अभी अपना सामान भी कम ला रहे है और जो ला रहे है उसे किसी को हाथ नहीं लगाने देते।

इस बार नहीं मिला कोई सहयोग
पिछले लॉकडाउन में बीकानेर के कुछ भामाशाह और रेल अधिकारीयों की और से कुछ सहायता मिली थी। लेकिन इस बार किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं मिली है। इस बार भी कुलियों को सहायता मिलने की उम्मीद है।

मिल जाए सहायता तो अच्छा

यात्रीभार कम होने के चलते कमाई इतनी नहीं हो पा रही है। अगर भामाशाहों या रेल विभाग की और से कुछ राशन की या आर्थिक सहायता मिल जाती है, तो थोड़ा राहत होगी।
-गिरधारीलाल, कुली

उठाते है सबका बोझ

हम यहो आने वाले यात्रिणों का बोझ उठाते है लेकिन, हमारा बोझ कौन उठाये। सुबह काफी जल्दी हम यहां स्टेशन पर आ जाते है लेकिन, इतनी कमाई नहीं हो पा रही है। कोई सहायता मिल जाए तो आराम मिल जाएगा।
-प्रेमगिरि, कुली

कुलियों की आर्थिक मदद की

लॉकडाउन के चलते कुलियों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है। उन्हें काम नहीं मिलने के कारण अधिकतर कुली बेरोजगार हो चुके थे। उत्तर पश्चिम रेलवे के जयपुर सहित अन्य मंडलों में उन्हें आर्थिक मदद के तौर पर सूखे राशन के किट दिए थे। समय-समय पर रेलवे के संगठनों की ओर से भी मदद की जाती है।

लेफ्टिनेंट शशि किरण, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी उत्तर पश्चिम रेलवे