
यहांं ऊंट पर सवार देवी का होता है पूजन-अर्चन
ऊंट रेगिस्तान का जहाज है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन का प्रमुख हिस्सा है। सदियों से ऊंट आवागमन का साधन होने के साथ-साथ खेती, कुओं से पानी निकालने, सामान ढोेने के काम आता रहा है। रियासतकाल में युद्ध के दौरान भी इनका उपयोग होता था। बीकानेर रियासत में ऊंटो की सेना थी, जिसे गंगा रिसाला कहा जाता था। वर्तमान में भारतीय सेना में बीएसएफ ऊंटो के माध्यम से देश की सरहदों की रक्षा कर रही है।
शक्ति की उपासना में ऊंट पर सवार देवी का पूजन-अर्चन भी किया जाता है। बीकानेर में बाबा रामदेव पार्क के पास ऊंट पर सवार देवी उष्ट्रवाहिनी का मंदिर भी है। यह मंदिर करीब एक शताब्दी प्राचीन बताया जा रहा है। देश में कई स्थानों पर भी उष्ट्र पर सवार देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। इतिहासकार जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार उष्ट्रवाहिनी मां सारिका देवी है। मुमई माता, दशा माता के नाम से भी प्रसिद्ध व पूजित है।
सावन शुक्ला त्रयोदशी प्राकट्य दिवस
मां उष्ट्रवाहिनी का प्राकट्य दिवस सावन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी है। उष्ट्रवाहिनी पुष्करणा समाज की कुलदेवी है। मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा चतुर्भुज है। मंदिर पुजारी शान्ति स्वरुप रंगा के अनुसार देवी के हाथों में तलवार, गदा, कमल पुष्प और वरदायिनी है। देवी के साथ सवारी ऊंट है। संगमरमर से बनी प्रतिमा मनमोहनी और भक्तों की मनोकमाना पूर्ण करने वाली है। सिर पर मुकुट, ललाट पर बिंदी, कानों में कुंडल, नाक में नथ, गले में हार सहित कलात्मक आभूषणों से श्रृंगारित देवी प्रतिमा है। रंगा के अनुसार देवी उपासक रुघनाथ, चेतनदास रंगा ने प्रतिमा की स्थापना की। गणेश दत्त रंगा ने चार दशकों तक पूजन-अर्चन किया।
सालभर पूजन-अनुष्ठान
बाबा रामदेव पार्क के पास िस्थत उष्ट्रवाहिनी मंदिर में सालभर पूजन-अर्चन और धार्मिक अनुष्ठानों का क्रम चलता रहता है। मंदिर पुजारी के अनुसार नवरात्र में विशेष अभिषेक, पूजन, श्रृंगार, महाआरती सहित देवी पाठ, मंत्र जाप के अनुष्ठान होते है। सावन शुक्ल त्रयोदशी को पाटोत्सव मनाया जाता है। होली पर विशेष पूजन-अर्चन का आयोजन होता है।
Published on:
29 Sept 2022 09:40 am
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