
मेहमान पक्षी का लोकगीतों में महत्व
-स्टोरी बाय विनोद भोजक
बीकानेर में सर्दी की दस्तक के साथ ही विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। ये पक्षी करीब पांच माह तक यहां मेहमान बन कर रहते हैं और गर्मी शुरू होते ही अपने वतन की ओर रुख कर लेते है। इन पक्षियों में कुछ ऐसे पक्षी भी है जो यहां के गीतों में गाए जाते हैं। एक दिन किसी ऑटों में कहीं पर जा रहा था तो उसमें चल रहे लोकगीत 'सुुपनो जगाई आधी रात में, तनै मैं बताऊ मन री बात, कुरजां ए हारे भंवर (पति) मिलाय दे, संदेशों हारै पीव ने पुगाय दे, पूछे कुरजां हारे गांव की लागे धरम की बाण (बहिन), संदेशों हारे पीव ने पुगाय दे रै। इस गीत सो सुनते ही कुरजां के महत्व को याद करने लगा। सोचने लगा की जिन देशों में स्थार्ई निवास करने वाली इस कुरजां का महत्व शायद ही उसके देशों में हो। लेकिन हमारे देश के लोकगीतों में कुरजां को विरह के दौरान याद किया जाता है। कुरजां ही एक ऐसा पक्षी है जो नायिका की विरह वेदना को समझती है। इसलिए तो उसे महिला अपने पति को संदेश पहुंचाने का आग्रह करती है। न केवल कुरजां ही अपितु अन्य कई ऐसे पक्षी है जिन्हें विरह के गीतों को गाया जाता है।
सात समंदर पार से आने वाली कुरजां को विरह के लोकगीतों में पक्षियों के माध्यम से ही अपने प्रिय को याद किया जाता है। वैसे तो कुरजां साइबेरिया, चीन, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान सहित कई देशों में ही अपने घौंसले बनाती है और वहां पर ही इनका स्थाई रहवास होता है।
लेकिन सर्दी के मौसम में इन देशों में जबरदस्त बर्फबारी होने के कारण ये शांत एवं लंबी गर्दन वाले ये पक्षी अपने वतन से पंख फैलाकर मैदानी इलाकों वाले स्थानों पर करवल करने पहुंच जाती है। जहां का वातावरण सौ य हो जाता है। हजारों किलोमीटर दूर से उड़कर आने वाले कुरजां को अपने देश में मेहमान की तरह रखा जाता है। यहां पर ये झुंड में पानी वाले स्थान तथा घास वाले मैदानी इलाकों में करवल करती है। एक अनुमान के मुताबिक 26 हजार फीट ऊंची उड़ान भर कर कुरजां अपने देश में पहुंचती है। इनका अधिकांश प्रवास पश्चिमी राजस्थान के इलाकों में ही रहता है। करीब छह माह तक ये विदेशी पक्षी अपने देश की शौभा बढ़ाते हैं और वापस अपने वतन की ओर उड़ान भर लेते है। सितंबर में इन पक्षियों के झुंड आकाश में नजर आने लगते हैं और मार्च में वापस अपवे वतन की ओर पंख फैलाकर चले जाते हैं। विदेशी पक्षी होने के कारण ही इनका लोकगीतों में स्थान दिया गया है। क्योंकि पति कमाने के लिए अपना देश छोड़कर विदेश चला जाता है। तब पत्नी कुरजां के माध्यम से ही अपने पति के हालचाल पूछती है। शीतकाल के दौरान कुरजां के स्वयं के देश में बर्फ गिरने के कारण उनके लिए भारत का विशेषतौर पर पश्चिमी राजस्थान का वातावरण इनके लिए अनुकूल रहता है। इनका वजन करीब ढाई से तीन किलोग्राम तक होता है और उनकी गर्दन भी लंबी होती है। इनकी विशेषता है कि ये झुंड में ही प्रवास करती है और झुंड में ही उड़ान भरती है।
कुरजां की अठखेलियां और पानी में भोजन के लिए डूबकी मारने के वक्त उनके सैलानी अपने कैमरों में कैद भी करते हैं। कुरजां के अलावा सात समंदर पार से गिद्ध भी बड़ी सं या में अपने देश को छोड़कर भारत की जमीन पर आते हैं। ये पक्षी कुरजां की तरह छह माह तक यहां प्रवास कर वापस अपने वतन की ओर चले जाते हैं। कुरजां के अलावा अन्य पक्षियों का भी लोकगीतों में महत्व दिया गया है। हालांकि कौवे को श्राद्ध पक्ष में ही पूछा जाता है और उन्हें भोजन करवा कर संतोष करते हैं कि अपने पूर्वजों ने भोजन कर लिया। लेकिन विरह के गीतों में अपने पति को संदेश देने के लिए पत्नी इसके महत्व को भी दर्शाती है। विरह के लोकगीत कौवे के लिए सोने की चौंच बनाने, पैरों में धुंधरू बांधने तथा खीर का भोजन करने का आग्रह किया गया है। लोकगीत 'उड़-उड़ रै हारा काला रै कागला, जद हारा पीवजी घर आवै, खीर खांड रा जीमण जिमाऊ, सोने री चौंच मंढाऊ कागा, जद हारा पीवजी घर आवै। अर्थात कौवे जैसे पक्षी को भी लोकगीत के माध्यम से महत्व दिया गया है।
इसके अलावा राष्ट्रीय पक्षी मोर के महत्व को भी कम आंका नहीं गया है। राजस्थान में गाए जाने वाले लोकगीतों में 'मोरिया आच्छो बौल्यो रै ढलती रात मा, हारा पीवजी बसै हैं परदेस मोरिया,पीव-पीव री वाणी छोड़ दे।Ó एक प्रकार से पक्षियों के महत्व को दर्शाने के लिए लोकगीतों में उनका उल्लेख किया गया है। लेकिन आज अगर देखा जाए तो पक्षियों एवं पशुओं का शिकार भी किया जा रहा है। शिकारी पक्षियों को मारकर बड़ी-बड़ी होटलों में महंगे दामों पर बेचते हैं। इस वजह से पक्षियों की सं या में भी गिरावट होने लगी है। अगर पक्षियों तथा वन्य जाीवों के शिकार पर अंकुश लगाना होगा तो कड़ा कानून बनाना होगा। हालांकि शिकार की रोकथाम के लिए कानून बना हुआ है लेकिन इसमें ढिलाई होने के कारण शिकारी बच निकलते हैं। साथ ही स्कूली शिक्षा में भी पक्षियों के महत्व को पढ़ाया जाना चाहिए।
Published on:
29 Oct 2021 07:53 pm
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