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न लगेगी गर्मी, न होगा दूध कम

अब मरुस्थलीय जिलों में गर्मी के दिनों में भी भैंस पालन आसान होगा। बीकानेर स्थित राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विवि (राजूवास) ने एक ऐसा सजीव मॉडल विकसित किया है, जिससे गर्मी के चलते पशुओं की दूध उत्पादकता और प्रजनन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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Hem Sharma

Jun 23, 2016

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हेम शर्मा

अब मरुस्थलीय जिलों में गर्मी के दिनों में भी भैंस पालन आसान होगा। बीकानेर स्थित राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विवि (राजूवास) ने एक ऐसा सजीव मॉडल विकसित किया है, जिससे गर्मी के चलते पशुओं की दूध उत्पादकता और प्रजनन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विवि की ओर से इस मॉडल का विकास करने का प्रमुख उद्देश्य मरुस्थलीय क्षेत्रों में भैंस पालन को बढ़ावा देना है। गौरतलब है कि ग्रीष्मकाल में भैंसें दूध कम देने लगती हैं और उनके पाले (हीट) में नहीं आने से ब्यात की अवधि बढ़ जाती है।

वैज्ञानिक तरीके से रख-रखाव

इस मॉडल के तहत विवि ने मुर्रा नस्ल की 9 दुधारू भैंसों और एक नर को रखा है। इसमें वैज्ञानिक प्रबंध कर भैंसों का रख-रखाव किया जा रहा है, जिससे उत्पादकता बढ़ी है।

विशेषज्ञों के अनुसार भैंस की चमड़ी मोटी होने, रंग काला होने और थर्मोरेग्यूलेटरी सिस्टम कमजोर होने के कारण गर्मी के मौसम में भैंस का दूध सूख जाता है और वह कम दूध देने लगती है। इसके अलावा गर्मी के कारण भैंस पाले में नहीं आती, इससे ब्यात की अवधि बढ़ जाती है।

ऐसे में भैंस पालक को आर्थिक नुकसान होता है। मॉडल के तहत गर्मी में दूध का उत्पादन सामान्य रखने और भैंस को पाले में लाने का वैज्ञानिक प्रबंध किया गया है। इसके लिए भैंसों के छप्पर में फोगर की व्यवस्था जल के छिड़काव से तापमान पर नियंत्रण किया जा रहा है।

100 से ज्यादा पशुपालक ले चुके हैं प्रशिक्षण

भैंस के दूध की मांग बढऩे और अधिक दाम मिलने के कारण क्षेत्र के पशुपालकों का रुझान भैंस पालन की ओर बढ़ रहा है। चूंकि गर्मी में भैंस पालन करना चुनौतीपूर्ण होता है, ऐसे में विवि ने भैंस पालन के वैज्ञानिक प्रबंध की प्रणाली विकसित की है।

विवि की ओर से दिए गए प्रशिक्षण में समीपवर्ती गांवों के 100 पशुपालक ट्रेनिंग ले चुके हैं। इनमें भामटसर और जाखासर गांव से 50-50 पशुपालक शामिल हैं। मरुस्थलीय क्षेत्र में अधिक गर्मी व पानी की कमी के कारण भैंस पालन का वैज्ञानिक प्रबंध किया जाना आवश्यक है।

हर घंटे चलाया जाता है फोगर

भैंस के बाड़े में हर घंटे में 10 से 15 मिनट तक फोगर चलाया जाता है। इससे भैंस का स्नान हो जाता है। आस-पास के वातावरण में भी ठंडक आ जाती है। फोगर दरअसल फव्वारे से भैंस को नहलाने का काम करते हैं।

हर घंटे ऐसा करने से कम पानी में भी भैंस के शरीर का तापमान सामान्य रहता है। इससे भैंस की उत्पादकता सामान्य रहती है। साढ़े सात लाख की लागत से यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया है।

इनका कहना..

भैंसें गर्मी में अक्सर तालाब, झील या नाड़ी में तैरती मिलती हैं। बीकानेर और आसपास के क्षेत्र में ऐसे जलस्रोत नहीं हैं। विवि ने फोगर विधि से भैंस के शरीर का तापमान सामान्य रखने का मॉडल विकसित किया है।

प्रो. बसन्त बैस, मुख्य अन्वेषक, राजूवास