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यहां लकडि़यों से पीटकर करते हैं कंस का वध

जन्माष्टमी - मिट्टी की मटकी पर बनाते हैं कंस की अनुकृति कृष्ण जन्म के समय होता है कंस का प्रतीकात्मक वध

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यहां लकडि़यों से पीटकर करते हैं कंस का वध

यहां लकडि़यों से पीटकर करते हैं कंस का वध

विमल छंगाणी - बीकानेर. देशभर में जन्माष्टमी पर्व भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के जन्म के समय खुशियां मनाई जाती है व अभिषेक, पूजन कर महाआरती की जाती है। कृष्ण के स्वागत में मंदिरों सहित घर-घर में झांकियां भी सजाई जाती है। जन्माष्टमी के दिन बीकानेर शहर में कृष्ण जन्म के समय अधर्म के प्रतीक रूप में कंस के प्रतीकात्मक वध की भी परम्परा है। जो न केवल अनूठी है बल्कि दशकों से चली आ रही है। मिट्टी की मटकी पर मिट्टी से बनाए जाने वाले कंस का वध जन्माष्टमी के दिन रात्रि 12 बजे लकडि़यों से पीटकर किया जाता है। गली-मोहल्ले इस दौरान भगवान कृष्ण के जयकारों से गूंज उठते है। कंस के वध की परंपरा दशकों से चल रही है।

एेसे बनता है कंस

पानी की मटकी के गोल हिस्से पर पहले तालाब की चिकनी मिट्टी लगाई जाती है। इसके बाद मिट्टी से कंस के दो सिंग बनाए जाते हैं। ललाट पर मिट्टी से आडम्बर बनाया जाता है। आंखे, नाक, कान, मुंह, मूंछ और जिह्वा भी मिट्टी से ही बनाए जाते है। काजल और कुमकुम का उपयोग रंग के रूप में किया जाता है। दांतों के लिए मिट्टी से बने बतरने अथवा कौडियों का उपयोग किया जाता है। कई स्थानों पर पेंट और शर्ट में कपड़े डालकर कंस के हाथ और पांव भी बनाए जाते है।

यहां के प्रसिद्ध है कंस

जन्माष्टमी के दिन गली-मोहल्लों से लेकर मंदिरों तक में मिट्टी से कंस बनाए जाते है। नगर सेठ लक्ष्मीनाथ मंदिर, मदन मोहन मंदिर, मरुनायक मंदिर के कंस अपने बड़े आकार विशिष्ट बनाने की कला के कारण प्रसिद्ध है। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में भगवान कृष्ण के दर्शनों के साथ इन कंस को भी देखने पहुंचते है। वहीं घरों के आगे, चौकियों, पाटों आदि पर भी बच्चों और युवाओं की ओर से बनाए गए कंस को शाम से रात्रि बारह बजे तक बिठाया जाता है। कंस के सत्तू का भोग लगया जाता है। जाल के पत्तों के नीचे कंस को बिठाया जाता है।

रात्रि 12 बजे होता है वध

जन्माष्टमी के दिन जहां घर-घर और मंदिर भगवान कृष्ण के जन्म की खुशियों से सराबोर होते है, झालर, शंख और घंटियों की ध्वनि के बीच भगवान कृष्ण के जन्म पर उल्लास का वातावरण होता है उसी दौरान गली-मोहल्लों से मंदिरों तक में कंस का प्रतीकात्मक वध होता है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हाथों में लकडि़यां लेकर कंस का वध करते है।

तालाब की मिट्टी श्रेष्ठ

92 वर्षीय कन्हैया लाल ओझा बताते है कि कंस बनाने के लिए तालाब की चिकनी मिट्टी सबसे सही होती है। इस मिट्टी को गीला करने से जहां इससे मन चाहा आकार दिया जा सकता है वहीं चिकनी होने के कारण इसकी पकड़ अच्छी रहती है व सूखने के बाद दरारे भी नहीं आती है। ओझा बताते है कि मिट्टी से कंस बनाना एक कला है। इसमें कई लोगों की पहचान रही है।