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गली-मोहल्लों से मंदिरों तक कंस का प्रतीकात्मक वध

मिट्टी से बनाए गए कंस का प्रतीकात्मक वध

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गली-मोहल्लों से मंदिरों तक कंस का प्रतीकात्मक वध

गली-मोहल्लों से मंदिरों तक कंस का प्रतीकात्मक वध

बीकानेर. जन्माष्टमी पर शहर में जगह-जगह कंस का प्रतीकात्मक वध किया गया। मध्यरात्रि भगवान कृष्ण के जन्म के समय जैसे ही घरों और मंदिरों में भगवान कृष्ण के जन्म की खुशियां मनाई जाने लगी और अभिषेक-पूजन के दौर शुरू हुए, उसी मिट्टी से बनाए गए कंस का प्रतीकात्मक वध किया गया। इस दौरान नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की के स्वरों से गली-मोहल्ले और मंदिर गूंज उठे।

बच्चों से बुजुर्गो तक ने हाथों में लाठियां लेकर अधर्म के प्रतीक रूप में कंस का वध किया। बीकानेर में जन्माष्टमी के दिन पानी की मटकी पर तालाब की मिट्टी से कंस की अनुकृति बनाने की दशकों पुरानी परम्म्ंपरा है। गली-मोहल्लों से मंदिरों तक कंस बनाए जाते है। कई स्थानों पर कपड़ों से कंस के हाथ और पैर भी बनाए जाते है। मिट्टी से कंस के दो सिंग, मुकुट, तिलक, नाक, मूंछ, मुंह, कान बनाए जाते है।

मदन मोहन मंदिर, मरुनायक मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर में बनाए जाने वाले बड़े आकारके कंस प्रसिद्ध है। वहीं गली-मोहल्लों में भी पन्द्रह से बीस फुट ऊंचाई के कंस बनाए गए। झंवरों का चौक, नथानी सराय, डागा चौक शिव शक्ति सदन के पास, बारह गुवाड़, भट्ठड़ो का चौक सहित दर्जनों पर कंस बनाए गए। रांगड़ी चौक में कंस को कोरोना का रूप दिया गया। बाल स्वरूप कृष्ण ने वैक्सीन इंजेक्शन के माध्यम से कोरोना कंस का वध किया।