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संजोडे सूं कजळी पूजै, कर सोळह सिणगार

कजली तीज - स्वांग मेहरी रम्मत के चौमासा गीत में कजली तीज का होता है विशेष उल्लेख

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संजोडे सूं कजळी पूजै, कर सोळह सिणगार

संजोडे सूं कजळी पूजै, कर सोळह सिणगार

विमल छंगाणी - बीकानेर. चौमासा ऋतु का भाद्रपद महीना प्राकृतिक सौन्दर्यता के साथ अनुपम छटाए लिए होता है। आकाश में काली घटाएं, मूसलाधार बारिश, नभ में चमकती बिजली और चारों ओर हरियाली वातावरण को उल्लासित बनाए रखती है। बागों में झूले झूलती महिलाएं व बालिकाएं, हंसी-खुशी का माहौल जीवन में नई उमंग उत्पन्न करता है। इसी महीने की तृतीया को कजली तीज का पर्व मनाया जाता है।

महिलाएं अपने अखंड सुहाग की कामना को लेकर मां कजली का व्रत-पूजन करती हैं। भाद्रपद के इसी अनुपम सौन्दर्य और तीज पर्व का विशेष वर्णन होली के अवसर पर आयोजित होने वाली स्वांग मेहरी रम्मतों के चौमासा गीत में है। जिसमें रम्मत उस्ताद के नेतृत्व में कलाकार भक्ति भाव के साथ कजली व्रत-पूजन का वर्णन गीत के माध्यम से करते हैं।

सुहागण मेहंदी रचाई, दे चन्द्र अरघ घर माही

स्वांग मेहरी रम्मत के चौमासा गीत में ‘सजै सोळह सिणगार तिजणिया बण ठण नितरी हरखासी’, ‘प्रीतम सागै बागौ जासी रेशम झूले पिवजी हिण्डासी’, ‘अमिया पूजण को चाली, ले हाथ चांदी की थाली’ के माध्यम से कजली पूजन का वर्णन किया गया है। वहीं ‘संजोडे सूं कजली पूजै, सज सोळह सिणगार’, ‘सुहागण मेहंदी रचाई, दे चन्द्र अरघ घर माही’ के माध्यम से तीज पर महिलाओं के सजने-संवरने, हाथों पर मेहंदी के मांडणे रचाने, चन्द्रदर्शन व पूजन की परम्परा को बताया गया है। जबकि ‘सातू, साडी, फल, मीठो पीहर सूं थाळी भर आसी’ और ‘देवेला आछरी अबकै म्हारी भुआ और मासी’ गीत के माध्यम से कजली तीज पर शहर की पारम्परिक परम्पराओं सत्तू ्रऔर आछरी का उल्लेख किया गया है।

हर साल होता है वर्णन

रम्मत कलाकार विजय कुमार ओझा के अनुसार स्वांग मेहरी रम्मत के चौमासा गीत में हर साल कजली पूजन का विशेष उल्लेख गीत के माध्यम से होता है। रम्मत उस्ताद के नेतृत्व में कलाकार श्रद्धा भाव के साथ कजली पूजन, शहर की परम्पराओं और प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन करते है। रम्मत कलाकार मदन गोपाल व्यास के अनुसार कजली पूजन का चौमासा गीत में अनिवार्य रूप से उल्लेख होता है। पत्नी अपने पति से कहती है कि हम दोनों एक साथ बैठ कर मां कजली का पूजन करेंगे। रम्मत उस्ताद जतन लाल श्रीमाली के अनुसार चौमासा गीत में दशकों से हर साल कजली तीज का उल्लेख गीत के माध्यम से होता है। जिसे कलाकार सामूहिक सस्वर गायन करते हैं।

भादू में कलायण छाई

भाद्रपद में होने वाली प्राकृतिक सुन्दरता और आने वाले परिवर्तन का वर्णन भी चौमासा गीत में होता है। ‘भादू में कलायण छाई, हद पवन चले पुरवाई’, ‘बिजली चमकै नभ माही, चौतरफा खुशिया छाई’, ‘भादू में घनघोर कलायन, चहुंदिश जल बरसासी’, ‘बरस रया पानी मूसलधार, सरोवर भरग्या अपरम्पार’ और ‘हुई हरियाली बेसुमार’ आदि के माध्यम से प्रकृति की सुन्दरता, अच्छी बारिश होने आदि का वर्णन किया गया है।