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धोरों में गरजे सेना के टैंक

महाजन फील्ड फायरिंग रेंज

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धोरों में गरजे सेना के टैंक

धोरों में गरजे सेना के टैंक

- दिनेश स्वामी

बीकानेर. जिले की महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में मंगलवार को सेना के टैंकों ने ताकत का प्रदर्शन किया। टी 90 टैंक सहित सेना के अन्य टैंकों ने धीरों में तय किए टारगेट पर गोले बरसाकर अपने रण कौशल का परिचय दिया। साथ ही सेना के रूद्र और अन्य हेलीकॉप्टरों से दुश्मन पर हमले का प्रदर्शन किया गया। महाजन में सेना की दक्षिण पश्चिम कमान की आर्टिलरी और आर्म्ड फ़ोर्स का वार्षिक प्रशिक्षण चल रहा है।

सेना में सैनिकों के युद्ध के दौरान काम लिए जाने वाले हथियार, तकनीकी उपकरण और आर्टिलरी तथा आर्म्ड हथियारों का प्रदर्शन किया गया। यह प्रसर्शन सुबह 9 बजे शुरू हुआ और दोपहर 12.30 बजे तक चला। इससे पहले सोमवार को के-9 वज्र गन की ताकत का प्रदर्शन भी किया गया।

देश में बने के-9 वज्र का कोई मुकाबला नहीं

मेक इन इंडिया के तहत देश में निर्मित अब तक की सबसे बेहतरीन आर्टिलरी गन के-9 वज्र से गोले दागे गए तो रेगिस्तान थर्रा उठा। महाजन फ़ील्ड फ़ील्ड फायरिंग रेंज में चल रहे सप्त शक्ति कमान के सैनिकों के प्रशिक्षण में के -9 वज्र को चलाकर प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही करीब चालीस साल से भारतीय सेना उपयोग कर रही मीडियम स्केल 130 एमएम आर्टिलरी गन से फायर किए गए।

असल के-9 वज्र स्वदेशी आर्टिलरी का उम्दा उदाहरण है। अगस्त 2019 में देश में निर्मित कोरिया तकनीक की इस गन की पहली खेप सेना में शामिल की गई। इसका उपयोग पहाड़ी और रेगिस्तानी दुर्गम स्थलों पर आसानी से किया जा सकता है। चीन से लगती सीमा पर भारतीय सेना से कुछ दिन पहले ही वज्र को तैनात किया है। अब रेगिस्तान में इसके संचालन और निशाने पर सटीक प्रहार करने का भारतीय सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिससे युद्ध जैसे हालत में देश के पश्चिमी मोर्चे के दुर्गम रेगिस्तान में दुश्मन से दो-दो हाथ कर सकें।

जानिए क्या और क्यों महत्वपूर्ण है के-9 वज्र

- बख्तरबंद वाहन पर लगे इस आर्टिलरी गन में 5 क्रू मेंबर रहते है। यह पूरी तरह वातानुकूलित होने se भीषण गर्मी में रेतीले धोरों में सैनिक काम ले सकते है।

- सेंसर स्कैन सिस्टम लगा रहता है। जो न्यूक्लियर केमिकल वातावरण में होने पर स्कैन कर लेता है। यानि परमाणु या रसायनिक हमला होने वाली जगह पर भी काम में लिया जा सकता है। बख्तरबंद में सैनिक तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन को शुद्ध कर पहुंचती है।

- यह 70 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाले चैनटायर वाहन पर लगी होती है। जो ऊँचे रेतीले धीरों और पहाड़ी क्षेत्र में भी आसानी से दौड़ने की ताकत रखता है।

- गन से भारी एक्सप्लोसिव वाला गोला 40 किलोमीटर के दायरे में टारगेट को ध्वस्त कर सकता है।

- गन की नली 73 डिग्री तक मूव कर सकती है। यानि टारगेट के धरातल, सामने से और ऊपर से गोला दाग सकता है।

- यह पूरी तरह ऑटोमेटिग संचालित गन है। जिसे ओपी से कमांड पोस्ट को टारगेट का सिग्नल मिलता है। कमांड पोस्ट से नक्शे पर टारगेट गन में फिक्स कर सटीक फायर होता है।

आर्मी कमांडर भी युद्ध नीड में

दक्षिण पश्चिम रेजिमेंट के वार्षिक अभ्यास ka निरीक्षण करने सोमवार को सप्त शक्ति कमांड के आर्मी कमांडर एएस भिंडर भी पहुंचे। उन्होंने हेलीकॉप्टर से महाजन फील्ड फायरिंग रेंज का निरीक्षण किया। वार्षिक प्रशिक्षण में 130 एमएम आर्टिलरी गन और के-9 वज्र समेत आर्टिलरी रेजिमेंट के युद्धक हथियार शामिल है।

सुबह से रात तक धोरों में ऊगली आग

महाजन रेंज में दक्षिण- पश्चिम कमान के सैनिकों के प्रशिक्षण कैम्प में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक आर्टिलरी गन चलाए गए। धोरों में गन की नली से फायर के साथ निकल रहे आग के गोले दूर तक नजर आए।

यह है 130 एमएम आर्टिलरी गन

- 27.5 किलोमीटर तक टारगेट को गोले से ध्वस्त कर सकता है।
- यह मीडियम स्केल गन है जो 45 डिग्री तक घूमकर फायर कर सकती है।
- 9 सैनिक की टीम मिलकर इसे चलती है। इसे ट्रक या टैंक के पीछे जोड़कर एक से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।
- रूस निर्मित इस आर्टिलरी गन का प्रयोग भारतीय सेना 40 साल से कर रही है।
- फायर करते समय जोरदार शोर करती है। यह अधिक हाई एंगल पर फायर करने में सक्षम नहीं है।