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अब रेडिमेड हुए सिग-सत्तू, घरों में कम हो रही थप-थप

कजली तीज पर बहन बेटियों के ससुराल सिग-सत्तू भेजने की परंपरा है। पहले हर घर में पिसे हुए चावल, चणा और गेंहू में घी तथा पिसी हुई चीन मिलाकर सिग-सत्तू बनाए जाते थे। अब मिठाई क कारखानों में भी सिग -सत्तू रेडिमेड मिल रहे है। बड़ी मात्रा में इनकी बिक्री हो रही है।

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बीकानेर.पारंपरिक पर्व-त्योहारों में अब बाजारों की भूमिका अधिक हो गई है। कभी पर्व-त्योहारों पर घरों में तैयार होने वाले पकवान व पारंपरिक खाद्य सामग्री दुकानों पर भी अब रेडिमेड रूप में उपलब्ध हो रही है। आमजन भी घरों में पकवान अथवा पर्व -त्योहर अनुसार आवश्यक खाद्य सामग्री घरों पर बनाने की अपेक्षा बाजारों में उपलब्ध हो रहे रेडिमेड स्वरूप को अधिक पसंद कर रहे है। बड़ी तीज पर्व पर शहर में बहन बेटियों के ससुराल पारंपरिक रूप से सिग, सत्तू भेजने की परंपरा है।

घरों के साथ-साथ मिठाई के कारखानों और दुकानों पर रेडिमेड सिग-सत्तू की बिक्री भी चल रही है। चावल, चणा व गेंहू के चूण से बनने के साथ-साथ अब मावा व काजू से तैयार हो रहे सिग-सत्तू की मांग भी बनी हुई है। अन्य मिठाइयों की तरह कारखानों में बड़ी तीज पर्व पर बड़ी मात्रा में काजू, मावा से सिग और सत्तू भी तैयार हो रहे है। महिलाएं रेडिमेड सिग-सत्तू को अधिक पसंद कर रही है। वहीं बड़ी तीज पर्व पर हर घर में सामूहिक रूप से तैयार होने वाले सिग-सत्तू की परंपरा कम हो रही है। सिग-सत्तू बनाने के दौरान होने वाली थप-थप की आवाज भी अब मंद हो रही है।

ऐसे बनते है सिग-सत्तू

पारंपरिक रूप से सिग-सत्तू और बारा चावल, चणा और गेंहू के चूण से तैयार होते है। पिसे हुए चावल, चणा और गेंहू में घी तथा पिसी हुई चीनी मिलाकर सिग, सत्तू और बारा तैयार किए जाते है। महिलाएं चूण, घी व चीनी को पारंपरिक स्वरूप में सिग, बारा और मठड़ी तैयार करती है। तैयार सिग व बारा पर चांदी बर्ग लगाकर बादाम, काजू, नेजा, पिस्ता, गिरी, बिंदिया से सजाए जाते है। सिग के चारो ओर काजू, बादाम, किसमिस, मिश्री,गिरि टुकड़े आदि रखे जाते है।

मावा, काजू के भी सिग-सत्तू

मिठाई व्यवसायी महेश अग्रवाल के अनुसार कारखाने में काजू की लुगदी बनाकर उसमें पिसी हुई चीनी मिलाकर काजू के सिग-सत्तू बनाए जाते है। इसी प्रकार मावा की सिकाई कर उसमें चीनी मिलाकर सत्तू बनाए जाते है। तैयार सिग-सत्तू की काजू, बादाम, पिस्ता, बर्ग इत्यादि से कलात्मक रूप से सजाए जाते है। ऑर्डर पर भी तैयार किए जाते है। वहीं चावल, चणा और गेंहू चूण के सिग-सत्तू भी बिक्री के लिए बनाए जा रहे है। कलात्मक सजावट के साथ आकर्षक रूप से पैकिंग भी की जा रही है।

घर-घर में बन रहे चूण के सिग-सत्तू

घर परिवार की महिलाएं सामूहिक रूप से सिग-सत्तू तैयार करती है। इसके लिए चावल, चणा और गेंहू के चूण, देशी घी और पिसी हुई चीनी का उपयोग किया जाता है। वरिष्ठ महिला कमला देवी ओझा के अनुसार सिग का वजन 5 से 11 किलोग्राम तक सामान्य रूप से होता है। इसका आकार बड़ा होता है व वजन भी अधिक होने के कारण सिग बनाने के दौरान विशेष ध्यान रखना पड़ता है। छोटा सत्तू जिसे स्थानीय भाषा में बारा कहते है सामान्यत: आधा किग्रा से एक किग्रा वजन तक का होता है।

बढ़ रहा चलन

मिठाई व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि गत वर्षों में रेडिमेड सिग, सत्तू की डिमांड बढ़ी है। पहले दोटे आकार के सत्तू की डिमांड रहती थी अब बड़े वजन की सिग भी लोग कारखानों में तैयार करवा रहे है। सिग के साथ छोटे सत्तू भी ऑर्डर पर तैयार करवा रहे है। सिग-सत्तू कारखानों में तैयार करने का कार्य साल दर साल बढ़ रहा है।

यह है रेडिमेड सत्तू के भाव

चणा - 440 रुपए प्रति किग्रा

गेंहू व चावल - 400 रुपए प्रति किग्रा

मावा - 400 रुपए प्रति किग्रा

काजू - 800 रुपए प्रति किग्रा

पंधारी - 400 रुपए प्रति किग्रा

सिग-सत्तू चूण के भाव

चावल चूण - 50 रुपए प्रति किग्रा

चणा चूण - 120 रुपए प्रति किग्रा

गेंहू चूण - 50 रुपए प्रति किग्रा

पिसी चीनी - 50 रुपए प्रति किग्रा


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