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बारानी फसलों से अच्छी उपज के साथ मुनाफा भी

बीकानेर के बारानी इलाकों में मरुस्थलीय सब्जियों की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही हैं। दरअसल, स्थानीय किसानों के बीच फली, काकडिय़ा, टिण्डसी, लोहिया, काचर जैसी सब्जियों की फसल दो बार लेने का प्रचलन बढ़ा है।

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Hem Sharma

Jun 16, 2016

Profits with good yield from rainfed crops

rainfed crops

बीकानेर के बारानी इलाकों में मरुस्थलीय सब्जियों की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही हैं। दरअसल, स्थानीय किसानों के बीच फली, काकडिय़ा, टिण्डसी, लोहिया, काचर जैसी सब्जियों की फसल दो बार लेने का प्रचलन बढ़ा है।

श्रीडूंगरगढ़, नोखा, पूगल और श्रीकोलायत के बज्जू क्षेत्र में काश्तकार 165 हैक्टेयर में इन फसलों की बुवाई कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा भी अर्जित कर रहे हैं। फली, काकडिय़ा, टिण्डसी जैसी सब्जियां इलाके के लोग बड़े चाव से खाते हैं। ये शुद्ध जैविक सब्जियां हैं। किसान यह फसलें फरवरी से जून और जुलाई से नवम्बर की दो अवधियों में लेते हैं।

काश्तकार फरवरी में कम पानी में उगने वाली काचर, टिण्डसी, काकडिय़ा, लोहिया की फसल लगाते हैं। फली, काकडिय़ा, टिण्डसी जैसी सब्जियां इलाके के लोग बड़े चाव से खाते हैं। ये शुद्ध जैविक सब्जियां हैं। किसान यह फसलें फरवरी से जून और जुलाई से नवम्बर की दो अवधियों में लेते हैं।

समय पर बिजाई

स्थानीय किसान रमण सिंह का कहना है कि क्षेत्र में सभी काश्तकार फरवरी के दूसरे-तीसरे सप्ताह के आस-पास बिजाई करते हैं। समय पर बिजाई करने से पौधे में समुचित बढ़ोतरी हो जाती है। देरी करने से फसल में पूरा फायदा नहीं मिलता। उत्पादन में गिरावट आती है।

बुवाई में देरी से फूलों

में नर की संख्या बढ़ जाती है।

मरुस्थलीय क्षेत्रों के लिए लाभकारी

बीकानेर के बारानी इलाकों में मरुस्थलीय सब्जियों की दो बार फसल लेने का प्रचलन बढ़ा है। नई तकनीक, विशेषज्ञ राय लेकर उत्पादन बढ़ा सकते हैं। इन फसलों के विपणन पर ध्यान देकर बुवाई क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है।

डॉ. इन्द्र मोहन वर्मा, निदेशक, कृषि विज्ञान केन्द्र, बीकानेर

वातावरण अनुकूल बना करते हैं खेती

बदरासर गांव के काश्तकार गोवर्धन सिंह, रामदेव, किशना राम पिछले चार-पांच सालों से टिण्डसी की खेती कर रहे हैं। ये काश्तकार शुष्क क्षेत्र की कठोर पारिस्थितिकी में कम वर्षा और लम्बे समय तक गर्मी के चलते खेतों में 45 से.मी. चौड़ी व गहरी नाली बनाते हैं। एक नाली से दूसरी नाली की दूरी 5 मीटर रखते हैं। इसमें झाडिय़ां, सनिया, खींफ, बुई व स्थानीय वनस्पति को बिछा देते हैं, भूमि का तापमान नहीं बढ़ता और कम पानी में ही खेती हो जाती है।