
दुनिया आज डिजिटल युग की ओर तेजी से बढ़ रही है। दिन प्रतिदिन नए-नए उपकरण हमारे जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। इनमें रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो आज भी कई लोगों के जीवन का एक हिस्सा बना हुआ है। भले ही मोबाइल में ऐप के रूप में हो या घरों-दुकानों में सजी यादों के रूप में। रेडियो दिवस यानी 13 फरवरी के दिन हम बीकानेर के रहने वाले दिनेश माथुर की दीवानगी की एक ऐसी कहानी बताते-दिखाते हैं, जिनका रेडियो से प्यार का रिश्ता भी अनोखा रहा है। दीवानगी ऐसी चढ़ी कि उन्होंने पुराने रेडियो का कलेक्शन करना ही शुरू कर दिया। रानीबाजार क्षेत्र में रहने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी 63 वर्षीय दिनेश माथुर ने 10 साल पहले मिले एक ताने के चलते इस कार्य को शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने रेडियो का कलेक्शन करना शुरू किया, तो आज उनके पास करीब 1125 से अधिक पुराने रेडियो का कलेक्शन है, जो बेहद पुराना है भले हो, लेकिन अधिकांश आज भी काम कर रहे हैं। परिवारीजन उनके इस शौक से हैरान-परेशान हैं, लेकिन उन्होंने घर के चार कमरों को ’रेडियो घर’ बना कर इस माध्यम से अपने लगाव को जताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वे रोजाना 4 घंटे रेडियो सुनते भीं है। हालांकि, माथुर के इस कलेक्शन को देखने कई बार तो खरीदने भी लोग आते हैं। लाखों का ऑफर भी करते हैं, लेकिन वे अपने दिल के करीब रहने वाले रेडियो कलेक्शन से एक भी सेट निकालने निकालने को तैयार नहीं होते। फोटो व कंटेंट -नौशद अली

दुनिया आज डिजिटल युग की ओर तेजी से बढ़ रही है। दिन प्रतिदिन नए-नए उपकरण हमारे जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। इनमें रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो आज भी कई लोगों के जीवन का एक हिस्सा बना हुआ है। भले ही मोबाइल में ऐप के रूप में हो या घरों-दुकानों में सजी यादों के रूप में। रेडियो दिवस यानी 13 फरवरी के दिन हम बीकानेर के रहने वाले दिनेश माथुर की दीवानगी की एक ऐसी कहानी बताते-दिखाते हैं, जिनका रेडियो से प्यार का रिश्ता भी अनोखा रहा है। दीवानगी ऐसी चढ़ी कि उन्होंने पुराने रेडियो का कलेक्शन करना ही शुरू कर दिया। रानीबाजार क्षेत्र में रहने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी 63 वर्षीय दिनेश माथुर ने 10 साल पहले मिले एक ताने के चलते इस कार्य को शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने रेडियो का कलेक्शन करना शुरू किया, तो आज उनके पास करीब 1125 से अधिक पुराने रेडियो का कलेक्शन है, जो बेहद पुराना है भले हो, लेकिन अधिकांश आज भी काम कर रहे हैं। परिवारीजन उनके इस शौक से हैरान-परेशान हैं, लेकिन उन्होंने घर के चार कमरों को ’रेडियो घर’ बना कर इस माध्यम से अपने लगाव को जताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वे रोजाना 4 घंटे रेडियो सुनते भीं है। हालांकि, माथुर के इस कलेक्शन को देखने कई बार तो खरीदने भी लोग आते हैं। लाखों का ऑफर भी करते हैं, लेकिन वे अपने दिल के करीब रहने वाले रेडियो कलेक्शन से एक भी सेट निकालने निकालने को तैयार नहीं होते। फोटो व कंटेंट -नौशद अली

दुनिया आज डिजिटल युग की ओर तेजी से बढ़ रही है। दिन प्रतिदिन नए-नए उपकरण हमारे जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। इनमें रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो आज भी कई लोगों के जीवन का एक हिस्सा बना हुआ है। भले ही मोबाइल में ऐप के रूप में हो या घरों-दुकानों में सजी यादों के रूप में। रेडियो दिवस यानी 13 फरवरी के दिन हम बीकानेर के रहने वाले दिनेश माथुर की दीवानगी की एक ऐसी कहानी बताते-दिखाते हैं, जिनका रेडियो से प्यार का रिश्ता भी अनोखा रहा है। दीवानगी ऐसी चढ़ी कि उन्होंने पुराने रेडियो का कलेक्शन करना ही शुरू कर दिया। रानीबाजार क्षेत्र में रहने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी 63 वर्षीय दिनेश माथुर ने 10 साल पहले मिले एक ताने के चलते इस कार्य को शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने रेडियो का कलेक्शन करना शुरू किया, तो आज उनके पास करीब 1125 से अधिक पुराने रेडियो का कलेक्शन है, जो बेहद पुराना है भले हो, लेकिन अधिकांश आज भी काम कर रहे हैं। परिवारीजन उनके इस शौक से हैरान-परेशान हैं, लेकिन उन्होंने घर के चार कमरों को ’रेडियो घर’ बना कर इस माध्यम से अपने लगाव को जताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वे रोजाना 4 घंटे रेडियो सुनते भीं है। हालांकि, माथुर के इस कलेक्शन को देखने कई बार तो खरीदने भी लोग आते हैं। लाखों का ऑफर भी करते हैं, लेकिन वे अपने दिल के करीब रहने वाले रेडियो कलेक्शन से एक भी सेट निकालने निकालने को तैयार नहीं होते। फोटो व कंटेंट -नौशद अली