20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सात साल में एक बार भी स्टाफ पैटर्न नहीं, गुणात्मक शिक्षा पर उठ रहे सवाल

विद्यार्थियों के अनुपात में नहीं है गांवों के विद्यालयों में शिक्षक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों में स्टाफ पैटर्न की आवश्यकता

2 min read
Google source verification
सात साल में एक बार भी स्टाफ पैटर्न नहीं, गुणात्मक शिक्षा पर उठ रहे सवाल

सात साल में एक बार भी स्टाफ पैटर्न नहीं, गुणात्मक शिक्षा पर उठ रहे सवाल

लूणाराम वर्मा
महाजन. एक तरफ जहां राज्य सरकार ग्रामीण अंचल के विद्यालयों में बेहतर सुविधाएं देने का दावा कर रही है एवं अच्छे परीक्षा परिणाम नहीं मिलने पर शिक्षकों पर कार्रवाई कर रही है। वहीं दूसरी तरफ गत सात साल से उच्च माध्यमिक विद्यालयों में स्टाफ पैटर्न व्यवस्था पर ध्यान नहीं देने से गुणात्मक शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग रहा है। हालांकि प्राथमिक शिक्षा में स्टाफ पैटर्न व्यवस्था को बार बार लागू किया जा रहा है लेकिन माध्यमिक शिक्षा में इसे नजरअंदाज करने का खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है।


गौरतलब है कि सभी सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षक व अन्य स्टाफ होना चाहिए, लेकिन इन नियमों को पिछले सात साल से शिक्षा विभाग द्वारा अनदेखा किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में माध्यमिक शिक्षा में स्टाफ पैटर्न किया गया था। उस समय यदि स्कूल में नामांकन 300 था तो उस हिसाब से पदों का निर्धारण किया गया, लेकिन आज उन विद्यालयों में नामांकन एक हजार के करीब पहुंच जाने के बाद भी स्टाफ व्यवस्था वही लागू है। ऐसे में विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा मिलना संभव नहीं है।


हर दो साल में होना चाहिए स्टाफ पैटर्न
विभागीय नियमानुसार प्रत्येक दो साल बाद विद्यालयों में स्टाफ पैटर्न व्यवस्था होनी चाहिए। स्टाफ पैटर्न सितंबर माह के नामांकन को आधार बनाकर किया जाता है। शिक्षा विभाग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार स्टाफ पैटर्न व्यवस्था को प्राथमिक शिक्षा में दो बार बार लागू किया जा रहा है।, लेकिन माध्यमिक शिक्षा में सात साल से स्टाफ पैटर्न नहीं होने से शिक्षण व्यवस्था प्रभावित हो रही है। महाजन, अरजनसर, जैतपुर, सूई, शेरपुरा, कालू, कपूरीसर सहित क्षेत्र के अन्य उच्च माध्यमिक विद्यालयों में आज एक हजार से अधिक का नामांकन है, लेकिन स्टाफ के नाम पर व्यवस्था सुचारू नहीं है। इसका सीधा असर शिक्षण व्यवस्था पर पड़ता है। नामांकन के अनुपात में शिक्षक नहीं होने से विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा नहीं मिल पा रही है। जिन विद्यालयों में कक्षा 1 से 12 एक साथ संचालित हो रही है। उनमें 105 बच्चों के नामांकन पर लेवल दो के तीन पद होने चाहिए। उसके बाद 35 बच्चों पर लेवल दो के 6 पद होने चाहिए। नामांकन के अनुपात में समानीकरण की व्यवस्था हर दो साल बाद हो तो शहरी के साथ ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में पढऩे वाले विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।

यह होने चाहिए पद
जानकारी के अनुसार जिन विद्यालयों की कक्षा 11 व 12 में 80 का नामांकन है। वहां अनिवार्य विषय के पद सृजित होने चाहिए। कक्षा 9 व 10 में 120 के नामांकन के बाद प्रत्येक 40 बच्चों पर एक अतिरिक्त वरिष्ठ अध्यापक होना चाहिए। यदि एक हजार से अधिक नामांकन है तो कनिष्ठ लिपिक के दो, यूडीसी के दो, चतुर्थ श्रेणी के पांच पद होने अनिवार्य है। कक्षा 6 से 12 में पुस्तकालय अध्यक्ष का पद भी होना जरूरी है। वहीं 750 से अधिक नामांकन वाले स्कूलों में प्रथम श्रेणी शारीरिक शिक्षक के पद सृजित होने का नियम भी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में इन नियमों की अनदेखी की जा रही है।


स्टाफ पैटर्न व्यवस्था सात साल से नहीं होने का खामियाजा सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। 25-26 नवंबर को होने वाले राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मेलन में स्टाफ पैटर्न को लेकर प्रस्ताव लिया जाएगा। स्टाफ पैटर्न व्यवस्था होने से ही गुणात्मक शिक्षा संभव है।
रतीराम सारण, तहसील अध्यक्ष शिक्षक संघ शेखावत लूणकरणसर।


स्टाफ पैटर्न, सीटों का निर्धारण, ऑनलाइन आदि सब जिला स्तर पर होते है। यह मामला उच्च स्तरीय है।
रेवंतराम पडिहार, ब्लॉकशिक्षा अधिकारी लूणकरणसर।