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विदा हो गई पुलिसिंग से साइकिल, पर घुमता रहा भत्ते का पहिया

देश में एक जुलाई से नया कानून लागू हो गया। पुलिस के आधुनिकीकरण की बात पहले से ही चल रही है। नए कानूनों को भी आधुनिक होती पुलिसिंग और न्याय प्रणाली में गति लाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में गतिशील होती पुलिसिंग के बीच Òसाइकिल भत्ताÓ जेहन में खटक पैदा करता है।

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जयप्रकाश गहलोत/ बीकानेर. देश में एक जुलाई से नया कानून लागू हो गया। पुलिस के आधुनिकीकरण की बात पहले से ही चल रही है। नए कानूनों को भी आधुनिक होती पुलिसिंग और न्याय प्रणाली में गति लाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में गतिशील होती पुलिसिंग के बीच Òसाइकिल भत्ताÓ जेहन में खटक पैदा करता है। हालांकि, यह भी कटु सत्य है कि आज के दौर में भी पुलिस महकमें में सिपाहियों को साइकिल भत्ता मिलता है। दरअसल, जब पुलिस का तेज रफ्तार बाइक और लग्जरी कारों से लैस अपराधियों से सामना हो, तो उनसे दो कदम आगे रहने के लिए पुलिस को भी आधुनिक साधन-संसाधनों की जरूरत है।

मजे की बात यह है कि भत्तों के नाम पर कुछ और राशि भी पुलिसकर्मियों को मिलती है, जिनका औचित्य ही साबित कर पाना मुश्किल साबित होता है। जहां तक साइकिल भत्ता की बात है, तो तथ्य यह भी है कि पुलिस थानों में अब साइकिलें नहीं के बराबर हैं। जबकि, पुलिसकर्मियों को प्रतिमाह 150 रुपए का साइकिल भत्ता अब भी मिल रहा है। फिलहाल, प्रदेश के पुलिस थानों में तैनात 7098 पुलिसकर्मियों काे हर माह 10 लाख 64 हजार 700 रुपए का साइकिल भत्ता दिया जा रहा है। यह केवल सिपाही स्तर के पुलिसकर्मियों को ही मिलता है। दरअसल थानों में तैनात सिपाहियों को गश्त करने, तामील कराने और पुलिस के काम के लिए साइकिल भत्ता दिया जाता है। जबकि थानों में साइकिलें हैं ही नहीं और पुलिसकर्मी भी साइकिल से न तो गश्त करते हैं और न ही पुलिसिंग के अन्य कामकाज करते हैं।

सवा करोड़ रुपए का खर्च, लेकिन मद…

पुलिस सूत्रों की मानें, तो प्रदेश में 1014 पुलिस थाने हैं। इनमें साइबर थाना, पर्यटक थाना, महिला थाने, दुर्घटना पुलिस थाने भी शामिल हैं। अनुमान के मुताबिक, पुलिस महकमे में 71 हजार 800 के आसपास सिपाही कार्यरत हैं। इनमें से करीब 29 हजार सिपाही थानों में तैनात हैं। इनमें भी 7098 पुलिसकर्मियों को साइकिल भत्ता दिया जा रहा है। थानों में तैनात पुलिसकर्मियों को सालाना करीब एक करोड़ 27 लाख 76 हजार रुपए साइकिल भत्ता मिलता है।

पांच दशक से मिल रहा साइकिल भत्ता

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि सिपाही को साइकिल भत्ता पहले से मिल रहा है। पहले सिपाही डाक बांटने या समन तामील कराने का काम साइकिल पर करते थे। 1980 तक तो पुलिस अधिकारी भी रात की गश्त में साइकिल पर जाकर कांस्टेबल-होमगार्ड को चेक करते थे। वर्तमान समय में शायद किसी भी सिपाही के पास साइकिल नहीं है। सभी निजी बाइक ही उपयोग में लेते हैं। ऐसे में साइकिल भत्ता को अपग्रेड कर मोटर साइकिल भत्ता कर देना चाहिए और राशि भी बढ़ानी चाहिए। करीब पांच दशक से सिपाही को साइकिल भत्ता मिल रहा है। इन पांच दशकों में अपराधी तो अपडेट हुए, लेकिन हमारे जवान अपडेट नहीं हो सके। अब साइकिल रिलेवेंट नहीं रही है।

अब नहीं रही उपयोगी

पुलिस सिपाहियों की मानें, तो थाना इलाके का राउंड लेना या गश्त के दौरान किसी अपराधी का पीछा करना साइकिल से संभव नहीं है। रुटीन वर्क में सरकारी डाक बांटने या समन तामील कराना भी साइकिल से नहीं हो सकता है। विभाग के उच्च अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि आज की पुलिसिंग में साइकिल का महत्व नहीं रहा। ऐसे में साइकिल भत्ते को मोटर साइकिल भत्ते में कन्वर्ट कर पेट्रोल राशि बढ़ा देनी चाहिए।


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