
खेजड़ी के पेड़ पर सांगरी की जगह लगे गिरेवडे।
राजस्थान के सूखे मेवे के रूप में पहचान रखने वाली सांगरी पर मौसम की मार व पेड़ों की देखरेख के अभाव में घटा उत्पादन, कम मात्रा में लगी सांगरी
राजस्थान का कल्पवृक्ष कहलाने वाली खेजड़ी पर इस बार मौसम की मार पड़ी है। इससे राजस्थान में सूखे मेवे के रूप में विश्व प्रसिद्ध सांगरी का उत्पादन घटा है। ग्रामीण क्षेत्र में इस समय सांगरी बहुतायत रूप में मिलनी शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार मार्च से मई तक मौसम में आए बदलाव से खेजड़ी पर मंजर बहुत कम लगी और उसकी जगह गिरेवड़े ( गांठे ) नजर आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में लोग सांगरी का इस समय संग्रह करते हैं, लेकिन इस बार निराशा हाथ लगी है और भरपूर मात्रा में सांगरी नही मिल रही है।
सूखे मेवे के रूप में प्रसिद्ध
होटलों से लेकर समृद्ध वर्ग के शादी समारोह में राजस्थानी शाही सब्जी के रूप में परोसी जाने वाली सांगरी इस संकट की घड़ी में है। सूखे मेवे के रूप में प्रसिद्ध गांव के लोगों को सर्व सुलभ व बिना खर्च के मिलने वाली सांगरी इस बार दुर्लभ हो गई हैं ।
दो हजार रुपए किलो बिक रही
लजीज शाही सब्जी के रूप में स्टेटस सिंबल बन चुकी सूखी सांगरी 1200 से 2000 रुपए प्रति किलो बिक रही हैं। वहीं हरी सांगरी 400 रुपए किलो तक बिक रही है। ग्रामीण रामनिवास जांगू ने बताया कि यदि मौसम अनुकूल हो, तो एक खेजड़ी पर करीब 10 किलो तक सांगरी उतरती है, लेकिन इस बार एक किलो तक मिल रही है। सांगरी की जगह खेजड़ी पर इस बार गिरेवड़े लगे हैं। इस बार सांगरी बहुत कम मात्रा में मिल रही है। इससे लोग निराश हैं।
पौष्टिकता से भरपूर
सांगरी पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक और आयरन जैसे खनिजों से समृद्ध है। प्रोटीन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। सांगरी की फली में मध्यम मात्रा में सेपोनिन होते हैं, जो रक्त में प्रतिरक्षा प्रणाली और कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं।
समय पर करें छंगाई
अधिकतर किसान नवम्बर में खेजड़ी की छंगाई करते हैं, जिससे पेड़ पर पर्याप्त सांगरी नही आएगी। सांगरी के लिए किसान जून में छंगाई करनी चाहिए। वहीं जब पेड़ पर मंजर आती हैं। उस समय यदि बारिश हो जाती है या बिजली कड़कती है, तो मंजर में कीड़े पड़ जाते है। वे कीड़े मंजर का गिरेवड़े बना देते है। समय पर खरपतवार नहीं करने से भी सांगरी नही आत है।
दिलीप कुमार समादिया, प्रधान वैज्ञानिक, बागवानी विज्ञान, केंद्रीय शुष्क एंव बागवानी संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद बीकानेर
Published on:
27 May 2024 06:05 pm
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