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जिन स्कूलों से निकले बड़े नेता वे सुविधाओं से महरूम

शहर की सबसे पुराने स्कूलों में शुमार लाल बहादुर शास्त्री स्कूल आज अपनी दुर्दशा पर ही आंसू बहा रही है

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Kajal Kiran Kashyap

Jun 27, 2016

school

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बिलासपुर .
शहर की सबसे पुराने स्कूलों में शुमार लाल बहादुर शास्त्री स्कूल आज अपनी दुर्दशा पर ही आंसू बहा रही है। शहर को सांसद, आधा दर्जन से अधिक मेयर, विधायक और बड़े-बड़े अधिकारी देने वाली यह स्कूल आज विद्यार्थियों और शिक्षकों को तरस रही है। दरअसल शहर के सबसे पुराने क्षेत्र शनिचरी में स्थित लाल बहादुर शास्त्री स्कूल 1862 से संचालित हो रही है। अपने स्वर्णिम काल में इस स्कूल में एडमिशन लेना बच्चों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं था। स्कूल में 3 से 4 हजार तक बच्चे पढ़ते थे। अपने समय में इस स्कूल का वैभव देखते ही बनता था। काफी बड़े क्षेत्र में फैला स्कूल परिसर आज शिक्षकों और बच्चों को तरस रहा है। नगर निगम द्वारा संचालित स्कूल में अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, संस्कृत, कॉमर्स जैसे विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। बच्चे न होने के कारण कई क्लास रूम वर्षो से बंद पड़े हैं, जो कि समय के साथ जर्जर भी होने लगे हैं।


असुरक्षित परिसर: पिछले साल शनिचरी स्थित पंडित मुन्नूलाल गल्र्स स्कूल को भी इसी स्कूल में मर्ज कर दिया गया। अब यहां की छात्राएं भी इसी स्कूल में पढ़ती हैं। नगर निगम ने गल्र्स स्कूल को पंडित लाल बहादुर शास्त्री स्कूल में मर्ज तो कर दिया, लेकिन गल्र्स स्कूल के लिए आवश्यक बंदोबस्त या व्यवस्थाएं नहीं की। रात में स्कूल में कोई चौकीदार नहीं रहता। स्कूल का मैदान में गाडि़यों के लिए पार्र्किंग की जगह और क्लसरूम के बाहर मवेशियों को बैठे हुए देखा जा सकता है।


डेढ़ सौ साल पहले शुरू हुई

अंग्रेजी शासनकाल के समय 1862 से शुरू हुआ यह स्कूल पहले आठवीं तक ही संचालित हुआ, जिसे 1940 में हाई स्कूल तक कर दिया गया। स्कूल से ही पढ़े कई बच्चे आज इसी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। वहीं कई शिक्षक एेसे हैं, जिनकी इस स्कूल में पढ़ाते हुए कई पीढि़या निकल गईं। यहां से पढ़कर सांसद, विधायक महापौर, सभापति, आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर जैसी विभूतियां निकली है। यहां से सांसद लखनलाल साहू, बलराम सिंह ठाकुर, राजेश पाण्डे, विनोद सोनी, अशोक राव, उमाशंकर जायसवाल, जगदीश शरण सिंह चौहान, जैसे जनप्रतिनिधि व अधिकारियों ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया है।


अंग्रेजी, विज्ञान के नहीं शिक्षक

अपने समय में इस स्कूल में प्रवेश के लिए चार हजार तक आवेदन आते हैं, लेकिन आज स्कूल में छटवीं से लेकर बारहवीं तक संचालित इस स्कूल में इस समय महज चार सौ के करीब बच्चे पढ़ते हैं। यह संख्या भी गल्र्स स्कूल के मर्ज होने के बाद की है। बच्चों को पढ़ाने के लिए वर्तमान में एक प्राचार्य, 14 लेक्चरर, 3 सहायक शिक्षक एक पीटीआई, एक लाइब्रेरियन और दो शिक्षाकर्मी हैं। स्कूल में कामर्स, कमेस्ट्री, मैथ्स, संस्कृत, अंग्रेजी और फिजिक्स टीचर के पद रिक्त हैं।


पहले शहर में गिनी चुनी ही स्कूल थे, इसलिए यहां एडमिशन ज्यादा होते थे। अब सरकारी स्कूल में पालक अपने बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते। वास्तव में अब पहले समय जैसी स्कूल नहीं रह गईं। स्कूल के पुराने दिन लाने के लिए समय के साथ इसमें बदलाव भी करना होगा। स्कूल को इंग्लिश मीडियम करना चाहिए, जिससे एडमिशन लेने वाले बच्चों की संख्या कुछ बढ़े।

विनोद सोनी, पूर्व सभापति, नगर निगम