Bilaspur High Court: 29 कर्मचारियों ने कार्रवाई को दी चुनौती
कोर्ट ने
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक को यह आदेश दिया है कि वह निकाले गए कर्मचारियों का पक्ष जानने के बाद ही यह तय करे कि उन्हें नौकरी पर रखना है या बर्खास्त करना है। वर्ष 2016 में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक प्रबंधन ने 106 लोगों को नियुक्ति दी थी, जिन्हें बाद में बर्खास्त कर दिया गया था।
इस मामले में 29 कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कार्रवाई को चुनौती दी। जस्टिस ए.के. प्रसाद की सिंगल बेंच ने जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के संबंधित कर्मचारियों की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त कर दिया था। कोर्ट ने माना कि कर्मचारियों का पक्ष जाने बिना ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
बैंक प्रबंधन ने की अपील, डीबी ने प्रकरण सुलझाने 3 माह का समय दिया
सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ बैंक प्रबंधन ने डिवीजन बेंच में अपील की थी। सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व न्यायाधीश अरविंद कुमार वर्मा की डिवीजन बेंच ने फैसला देते हुए सभी बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के सिंगल बेंच के फैसले को निरस्त कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता यानी बैंक प्रबंधन को यह निर्देश दिया कि जिन कर्मचारियों ने भी अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी है, उनका पक्ष जाना जाये और उसके बाद ही उनकी बर्खास्तगी को लेकर कोई फैसला किया जाये। कोर्ट ने इसके लिए प्रबंधन को 3 माह का समय दिया है।
भर्ती में की गई थी मनमानी और गड़बड़ियां
Bilaspur High Court: जिला सहकारी केंद्रीय बैंक,
बिलासपुर में भाजपा नेता देवेंद्र पांडेय के अध्यक्षीय कार्यकाल में 2016 में 106 कर्मचारियों की भर्ती की गई थी। इस भर्ती के लिए एक एजेंसी के जरिये उम्मीदवारों की परीक्षा ली गई और फिर इंटरव्यू के बाद नियुक्तियां दी गई। भर्तियों में गड़बड़ी की शिकायत होने के बाद तत्कालीन सीईओ और कलेक्टर ने नियुक्त किया गए सभी लोगों को बर्खास्त कर दिया था।
बताया जाता है कि इन भर्तियों के लिए विधिवत ढंग से अनुमति नहीं ली गई थी। वहीं कई लोग परीक्षा में नहीं बैठे और उन्हें भी नौकरी दे दी गई। इंटरव्यू कमेटी में बैंक प्रबंधन ने अपने ही अपात्र कर्मचारियों को शामिल कर लिया था। इंटरव्यू के नंबर भी काफी ऊपर-नीचे थे। इसके अलावा कई अनेक गड़बड़ियां उजागर हुई थीं। जिसे देखते हुए यह भर्ती ही निरस्त कर दी गई थी।