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CG High Court: SECL को फटकार, कहा- बेटे को नौकरी देने के साथ ईमानदारी से करें काम…

CG High Court: कोर्ट ने साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) को फटकार लगाते हुए महिला के बेटे उमेश तिवारी को नौकरी देने का आदेश दिया है।

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सरकार 3 महीने में मराठी को भाषिक अल्पसंख्यक दर्जा दें (Photo source- Patrika)

सरकार 3 महीने में मराठी को भाषिक अल्पसंख्यक दर्जा दें (Photo source- Patrika)

CG High Court: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में जमीन अधिग्रहण के 34 साल बाद महिला को हाईकोर्ट से न्याय मिला। कोर्ट ने साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) को फटकार लगाते हुए महिला के बेटे उमेश तिवारी को नौकरी देने का आदेश दिया है। इसके अंतर्गत 6 जुलाई 2017 से उमेश को नियुक्ति और उस दिन से अब तक की सभी सुविधाएं और वेतन लाभ देने कोर्ट ने कहा।

CG High Court: कोर्ट ने कहा- सही व्यक्ति को अधिकार मिले

जस्टिस संजय के. अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को ईमानदारी और सद्भाव के साथ काम करना चाहिए। गलती अगर कंपनी की थी, तो उसकी सज़ा एक सामान्य नागरिक को नहीं मिलनी चाहिए। कोर्ट ने एसईसीएल के उस पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत एक फर्जी व्यक्ति को जमीन के बदले नौकरी दे दी गई थी।

हाईकोर्ट ने एसईसीएल की दलील को खारिज करते हुए कहा कि म्युटेशन (नामांतरण) का रिकॉर्ड सिर्फ कब्जे का प्रमाण होता है, स्वामित्व का नहीं। जब मुआवजा महिला को दिया गया, तो माना गया कि वो ही जमीन की मालिक थी। अगर पहले गलती से किसी गलत व्यक्ति को नौकरी दी गई, तो उसे सुधारकर सही व्यक्ति को हक मिलना चाहिए। इस आधार पर बेटे को नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह अधिग्रहण के समय पैदा नहीं हुआ था।

एसईसीएल को फटकार

कोरबा के दीपका गांव निवासी निर्मला तिवारी की 0.21 एकड़ जमीन को 1981 में कोयला खदान के लिए अधिग्रहित किया गया। इसके एवज में नियमों के अनुसार उन्हें मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलनी थी। महिला को तो 1985 में मुआवजा मिल गया, लेकिन नौकरी उनके बेटे की जगह एक फर्जी व्यक्ति नंद किशोर जायसवाल को दे दी गई, जिसने खुद को निर्मला तिवारी का बेटा बताकर दस्तावेज बनवा लिए थे।

जब निर्मला को इस धोखाधड़ी का पता चला, तो उन्होंने एसईसीएल को जानकारी दी और लंबी लड़ाई लड़ी। इसके बाद 2016 में कंपनी ने नंद किशोर को नौकरी से हटा दिया। लेकिन महिला के बेटे उमेश तिवारी को नौकरी नहीं दी। कंपनी का तर्क था कि जब जमीन अधिग्रहित हुई, तब न तो जमीन महिला के नाम पर थी, और न ही उमेश तिवारी का जन्म हुआ था।