
हाईकोर्ट (Photo source- Patrika)
CG News: भिलाई के एक पति को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। पत्नी पर शादी से पहले गंभीर मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया छिपाने का आरोप लगाकर विवाह रद्द करने और तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका को बिलासपुर कोर्ट ने खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने साफ किया कि केवल मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन से मानसिक बीमारी साबित नहीं होती, इसके लिए डॉक्टर की गवाही और ठोस सबूत जरूरी हैं। फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी।
भिलाई निवासी एक पति को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली, जिसने पत्नी पर शादी से पहले गंभीर मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया छिपाने का आरोप लगाकर विवाह रद्द करने और तलाक की मांग की थी।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद ने कहा कि केवल मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन दिखाने से मानसिक बीमारी साबित नहीं होती। इसके लिए डॉक्टर की गवाही और ठोस सबूत पेश करना जरूरी था, जो पति की ओर से नहीं दिया गया।
भिलाई निवासी इस दंपती का विवाह 3 मार्च 2008 को हुआ था और उनकी दो बेटियां हैं। पति का आरोप था कि शादी के बाद पत्नी का व्यवहार असामान्य हो गया। वह अचानक चिल्लाने लगती, सामान तोड़ती, गाली-गलौज करती और बच्चों को पीटती थी। बाद में पता चला कि वह मनोवैज्ञानिक दवाइयां ले रही है।
CG News: पति ने दावा किया कि पत्नी जन्म से ही सिजोफ्रेनिया की मरीज थी, लेकिन शादी से पहले परिवार ने यह जानकारी छिपाई। अक्टूबर 2018 में पत्नी एक बेटी को लेकर मायके चली गई और फिर वापस नहीं लौटी। इसके बाद पति ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 12 के तहत धोखाधड़ी के आधार पर विवाह रद्द करने और क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की।
दुर्ग फैमिली कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी पेश नहीं हुई और मामला एकपक्षीय रूप से चला। पति ने मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन और अपने गवाह पेश किए, लेकिन फैमिली कोर्ट ने 4 जनवरी 2023 को याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि आरोप साबित करने के लिए मेडिकल एक्सपर्ट की गवाही जरूरी है।
Published on:
16 Aug 2025 03:31 pm
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