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दर्शन का मतलब है देवगुरु और धर्म पर सही श्रद्धा रखना-जैन मुनि पंथक

जैन मुनि पंथक काा टिकरापारा गुजराती जैन भवन में प्रवचन, जैन साध्वियों का प्रवचन क्रांति नगर में, आज मनाई जाएगी महावीर भगवान की जयंती

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बिलासपुर . जीवन में सही श्रद्धा रखनी चाहिए। दर्शन का मतलब है देवगुरु और धर्म पर सही श्रद्धा रखना। देव अरिहंत गुरु ? निगरानी और धर्म केवली प्रारूप रिक्त होना चाहिए, लेकिन आधि-व्याधि और उपाधि से पीडि़त संसारी लोग इन शरणों को छोड़कर संपत्ति, सत्ता, स्वजन और समाज की शरण लेते हैं और दुखी रहते हैं। यह बातें बुधवार को जैन मुनि पंथक ने आयंबिल आराधना के दौरान कही।
जैन मुनि पंथक ने शहर के गुजराती जैन समाज में आयंबिल आराधना के दौरान प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि दर्शन का दूसरा मतलब होता है देखना और सब के दर्शन के ऊपर दर्शनवरणीय धर्म का उदय होता है, तभी देखना हो जाता है, और व्यक्तियों, जीव को नींद आती है वह भी दर्शन में वर्णित कर्म के उदय से आती है। नींद की गोली लेकर सामने से नींद को आमंत्रित करना सराहनीय नहीं है। इस अवसर पर प्रवचन में विशेष रूप से किशोर देसाई, प्रवीण दमाणी, राजू तेजाणी, गोपाल वेलाणी, हितेश तेजाणी, चेतन सुतारिया, उषा शाह, रमा तेजाणी, उर्मिला तेजाणी सहित समाज के लोग उपस्थित थे।

'महावीर या गौतम बनने की लालसा हो तो आत्मा का उत्थान होगा': क्रांति नगर संजीव चोपड़ा के निवास में वसुंधरा श्रीजी गुरुवर्या ने अपने प्रवचन में कहा कि महावीर या गौतम बनने की लालसा हो तो हर आदमी को आदमी सा प्यार दो। वीरराग के माध्यम से किस प्रकार हमें अपने आत्मा का उत्थान करना है और किस प्रकार से दुख को सहन करेंगे, तभी हमारी आत्मा का विकास होगा। दुख को सहन करने के लिए हम घबराते हैं सुख को बढ़ाने के लिए हम दौड़ रहे हैं। कितना मेहनत करने और पुरुषार्थ करने के बाद भी क्या लगता है कि मैं सुखी हूं। जितनी भौतिक सुख सुविधाएं बढ़ाते हैं इन सबका जब हम मन में अवलोकन करते हैं तो लगता है मैं और दुखी हूं। क्योंकि हम पहले दो कमरे के मकान, गाड़ी बिना एसी के रहते थे। लेकिन आज बंगला कार, एसी में रहते हैं फिर भी हम सुख नहीं है। हम जितनी भौतिक सुविधा बढ़ाएंगे उतना उन को सहेजने के लिए खर्च करना पड़ेगा, नौकर-चाकर बढ़ाना पड़ेगा। अगर एक-दो दिनों नौकर-चाकर ना आएं तो वह हमारे लिए दुख का दिन होता है।

महावीर जयंती विशेष: क्रांति नगर में गुरुवर्या सुभद्रा श्रीजी ने अपने प्रवचन में कहा कि महावीर की वाणी जब सुनो प्यारी लगेगी। भगवान महावीर का जन्म चैत्र सुदी तेरस के दिन हुआ था जिस समय भगवान महावीर का जन्म होता है, उस समय 56 इंद्राणीया के आसन कंपायमान होते हैं और वह इस धरती में आकर जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ है सर्वप्रथम मुनि की शुद्धिकरण कराते हैं कोई नृत्य करता है एकोई दर्पण दिखाता है, कोई शुद्धि निवारण कार्य करते हैं, तो कोई दीपक ले कर के वह आते हैं। इस इस प्रकार से 56 इंद्राणीया इस धरती पर आकर के विविध कार्यक्रम करके अपने.-अपने स्थान में पुन: चले जाते हैं इंद्र का आसन कंपायमान होता है। भगवान महावीर एवं जितने तीर्थंकर होते हैं जन्म से तीन ज्ञान लेकर के आते मति ज्ञान, सुदी ज्ञान और यति ज्ञान गुरूवर्या ने कहा कि अपने-अपने घरों में हम अपने बच्चों का जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाते हैं लेकिन हम यह नहीं सोचते कि बच्चे की उम्र 1 वर्ष और कम हो गए हैं हम जन्मदिन में मोमबत्ती को बुझाने का काम करते हैं जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए दीपक को बुझाया नहीं जाता प्रज्वलित किया जाता है और हमें केक को काटने का शब्द इस्तेमाल करते हैं जबकि काटना शब्द तो हिंसा जन्य हो गया है। हम को काटना शब्द ना बोलकर सुधारना शब्द बोलना चाहिए। सब्जी को भी काटना शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि जन्मदिन के अवसर पर आप अपने बच्चों को जिनालय के अंदर ले जाए अभिषेक कराएं और आरती उतारने का काम करें। कोई गुरु भगवंतों के पास जाएं आशीर्वाद ग्रहण करें। इस प्रकार से जन्म दिवस मनाया जाएगा कल भगवान महावीर का जन्म दिन बड़े धूमधाम से सकल जैन समाज मनाता है। महावीर के जन्मदिवस को कल्याणक दिवस कहते हैं क्योंकि त्रिलोकीनाथ भगवान महावीर का जन्म सबका कल्याण करने के लिए हुआ है।