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इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में ई-रिक्शा सरताज, लेकिन मैदानी रफटफ इन्हें खींच रहे पीछे

E-Rickshaw: रेलवे, आरटीओ (RTO), स्थानीय पुलिस, जिला कलेक्ट्रेट, निकायों में ई-रिक्शा को लेकर संवाद नहीं, ऑटो संचालकों के एसोसिएशन (Auto Associations) नीतियों की प्रतिक्षा में

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E-Rickshaw

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बरुण सखाजी
बिलासपुर. E-Rickshaw: केंद्र व राज्य की सब्सिडी और सस्ते माध्यम में सड़क पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ तो रही है, लेकिन नीतियां, व्यवहार इन्हें पंख फैलाने से रोक रहे हैं। ई-वाहन विक्रय के आंकड़ों में ईरिक्शा बिक्री सबसे ऊपर है।

इसके बाद बाइक्स, बाइसिकल्स का है। केंद्रीय परिवहन मंत्रालय (Union Ministry of Transport) के आंकड़ों के हिसाब से भारत में ईवाहन का कारोबार 3 लाख करोड़ से अधिक का संभावित है। बिलासपुर, सरगुजा, रायगढ़, कोरबा जैसे मझोले शहरों में सड़कों पर ईरिक्शा लोक परिवहन का सशक्त माध्यम बनकर उभर रहे हैं।

लेकिन इनमें ड्यरेबिलिटी, मैदानी रफटफ, ऑटो वालों के आपसी झगड़े, अस्पष्ट सरकारी नीतियों के कारण समस्याएं अधिक हैं। इस कारण यह मार्केट तमाम बूस्टरों के बावजूद उठने में झिझक रहा है।

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प्रशासन रोडमैप नहीं दे पाया
बिलासपुर में बीते 3 साल पहले जिला कलेक्टर ने सभी ऑटो एसोसिएशनों को बुलाकर बैठक की थी। इसमें कहा गया था कि साल 2022 तक सभी पेट्रोल-डीजल ऑटो सड़क से हटाने होंगे। इसलिए ईरिक्शा पर अधिकतर शिफ्ट हों। बैठक के बाद 3 साल बीत गए कोई बात आगे नहीं बढ़ी।

IMAGE CREDIT: E-Rickshaw

डीजल ऑटो एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश सोनवानी कहते हैं, इस बैठक में सिर्फ टाइम लाइन दी गई, मगर हमारी समस्याएं नहीं सुनी। जिनके ऑटो ईएमआई पर हैं, वे कैसे ईरिक्शा पर शिफ्ट होंगे, होंगे तो शासन क्या मदद करेगा आदि। इन सब पर आगे की बैठकों में बात होती, लेकिन 3 वर्षों में कुछ हुआ ही नहीं।

दूसरी तरफ कोरोना ने डेढ़ साल खराब कर दिए। ई-रिक्शा (E-Rickshaw) जिन्होंने लिए भी थे तो वे रखे-रखे खराब हो गए। गांव, उपनगरीय सेवाओं में ई-रिक्शा काम नहीं कर पाता। यहां डीजल ही चलते हैं। वहीं पेट्रोल ऑटो वालों की आपसी असहमतियां अलग हैं।

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ई-वाहन संबंधी नीति में राज्य की केंद्र पर निर्भरता
इधर प्रशासन की ओर से हर पहल केंद्रीय वाहन नीति के अनुसार की जाती है। ईवाहनों के मामले में जन परिवहन पूरी तरह से ईवाहनों पर शिफ्ट करना है। इसके लिए क्रमिक चरण हैं। परंतु कोरोना के कारण इनमें रफ्तार घटी है। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने शहरी विकास मंत्रालय को अपनी स्क्रैप नीति दी है।

इसका अनुपालन शहरी निकाय और राज्य के शहरी मंत्रालयों को करना है। बिलासपुर में 2018 में इस संबंध में बैठक हुई फिर लोकसभा चुनाव और कोरोना के कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार 2018 में राज्य ने ईव्हीकल्स को बढ़ावा देने वाली नीति के तहत महिलाओं को ईरिक्शा दिए थे। सब्सिडी के साथ दिए गए इन रिक्शों का संचालन विभिन्न शहरों में हो रहा है, लेकिन कोरोना में रखे रहने के कारण ये खराब हो गए। नतीजे में इनका चलन जिस रफ्तार से बढ़ा था वह कम हो गया।


बिक्री के आंकड़े संतोषजनक
ई-वाहन में बिलासपुर, सरगुजा, रायगढ़, कोरबा में बिक्री के आंकड़ों में सबसे ऊपर ईरिक्शा ही है। इस सेगमेंट में कइयों कंपनियां काम कर रही हैं, लेकिन ब्रांड स्तर पर कंपनियां मैदान में कम दिख रही हैं। इस कारण इस सेगमेंट में राज्य और केंद्र की सब्सिडी के चक्कर में असेंबलिंग कंपनियां गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखतीं।

बीते 2015 से 2020 तक के आंकड़ों में राज्य में ई-रिक्शा की संख्या साढ़े 3 हजार के पार है। जबकि डीजल, पेट्रोल ऑटो इनसे 20 गुना तक अधिक हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल सेक्टर से जुड़े लोगों के मुताबिक इस सेगमेंट में विश्वसनीय कंपनियां आ रही हैं तो गारंटी, ऑफ्टर सेल सर्विस, शिकायत निवारण आदि में सुधार होगा तो यह सेक्टर और बढ़ेगा।