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हाईकोर्ट का फैसला, अपनी रकम मांगना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं

Bilaspur News: हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कर्ज की वसूली की मांग करता है तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा।

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High Court: Asking for your money is instigating suicide

हाईकोर्ट का फैसला

बिलासपुर। Chhattisgarh News: हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कर्ज की वसूली की मांग करता है तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जिसने ऋण दिया है वह निश्चित रूप से इसे वापस लेना चाहेगा। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने एक महिला के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज एफआईआर और आरोप पत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

प्रकरण के अनुसार शिक्षक नरेश यादव ने याचिकाकर्ता शैला सिंह को प्रधान मंत्री विकास कौशल योजना से संबंधित एक सरकारी योजना के बारे में बताया। याचिकाकर्ता ने लगभग 10 लाख रुपए उसको दिए। याचिकाकर्ता की संस्था सहित संबंधित संस्था को उसके हिस्से का पैसा वापस नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने नरेश से अपनी राशि चुकाने का अनुरोध किया, तो उसने उसका फोन उठाना और उसके मैसेजेस का जवाब देना बंद कर दिया। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर नरेश को परिणाम भुगतने की धमकी दी। उक्त धमकी से परेशान होकर नरेश की पत्नी ने जहरीला पदार्थ खा लिया।

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रिपोर्ट दर्ज होने पर पुलिस ने याचिकाकर्ता शैला सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध दर्ज कर लिया। इसे चुनौती देते हुए शैला सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं, जिससे यह पता चलता हो कि मृतका और याचिकाकर्ता शैला सिंह के बीच कुछ ऐसी बात हुई है, जिसमें पैसे लेने के आरोपी की पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया गया हो। याचिकाकर्ता ने मृतका के पति से ऋण राशि चुकाने की मांग की थी, लेकिन उसने कभी भी पुलिस अधिकारियों से कोई शिकायत नहीं की और न ही पुलिस विभाग के किसी उच्च अधिकारी से शिकायत की। मामले के परिस्थितियों और तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि याचिकाकर्ता ने अपनी ऋण राशि की वसूली के लिए कोई जबरदस्ती का तरीका अपनाया था।

ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया

कोर्ट ने आदेश में कहा कि यदि याचिकाकर्ता द्वारा कोई मांग की गई थी, तो उसे उकसावे के रूप में नहीं माना जा सकता। क्योंकि जिसने भी ऋण दिया है वह निश्चित रूप से इसे वापस लेना चाहेगा। कोर्ट ने इन्हीं टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध के लिए आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

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