
हाईकोर्ट (photo Unsplash images)
Saas Bahu Case: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति को मृतक की संपत्ति नहीं माना जा सकता। इसलिए बहू से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपनी तनख्वाह से सास को भरण-पोषण दे। कोर्ट ने बहू की अपील स्वीकार करते हुए मनेन्द्रगढ़ फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
फैमिली कोर्ट ने हर महीने 10 हजार रुपए भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था। प्रकरण के अनुसार हसदेव क्षेत्र एसईसीएल में कार्यरत भगवान दास की वर्ष 2000 में मृत्यु हो गई थी। उनकी मौत के बाद बड़े बेटे ओंकार को अनुकंपा नियुक्ति मिली। ओंकार की भी मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति दी गई। वर्तमान में वह सामान्य श्रमिक के रूप में केंद्रीय अस्पताल, मनेन्द्रगढ़ में कार्यरत है।
फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ बहू ने हाईकोर्ट में अपील की और बताया कि सास की देखभाल उनके दूसरे बेटे उमेश द्वारा की जा रही है, जिसकी आमदनी हर महीने 50 हजार रुपये है। सास को खेती से सालाना 1 लाख रुपए तथा मासिक 3000 रुपए पेंशन मिलती हैं। उसे पति की बीमा राशि से 7 लाख रुपऐ मिल चुके हैं।
बहू की खुद की तनख्वाह सिर्फ 26 हजार रुपए है और उसकी एक 6 साल की बेटी भी है, जिसकी जिम्मेदारी उस पर है। इन तथ्यों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती, इसलिए बहू पर सास को वेतन से भरण-पोषण देने का दबाव नहीं डाला जा सकता। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द करते हुए यह भी कहा कि सास कानून के तहत किसी अन्य उपाय की तलाश कर सकती हैं।
नियुक्ति से पहले, बहू ने 10 जून 2020 को एक शपथपत्र देकर सास को दूसरा आश्रित बताया था और नियुक्ति मिलने पर सास का भरण-पोषण करने की बात कही थी। लेकिन नौकरी लगने के बाद उसने सास को छोड़ दिया और मायके जाकर रहने लगी।
परिवार न्यायालय में आवेदन कर सास की ओर से बताया गया कि वह 68 साल की है और कई बीमारियों से पीड़ित हैं और केवल 800 रुपए की पेंशन पाती हैं। उसने हर महीने 20 हजार रुपए भरण-पोषण और 50 हजार रुपये मुकदमेबाजी खर्च की मांग की। मनेन्द्रगढ़ पारिवारिक न्यायालय ने बहू को हर महीने 10 हजार रुपए भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।
Published on:
29 May 2025 10:05 am
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