CG High Court: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन में ससुराल पक्ष द्वारा सामान्य झगड़े या तिरस्कारपूर्ण टिप्पणियों को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने उक्त फैसला देते हुए विवाहिता की आत्महत्या के लिए पति और ससुर को दोषमुक्त किया निचले कोर्ट ने दोनों को सात वर्ष के सश्रम कारावास और 1,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
प्रकरण के अनुसार 31 दिसंबर 2013 को महिला को रायपुर स्थित अस्पताल में झुलसी हुई गंभीर अवस्था में भर्ती कराया गया था। 5 जनवरी 2014 को उसकी मृत्यु हो गई। आरोप के अनुसार महिला के पति और ससुर उसे अपशब्द कहकर अपमानित करते थे और चरित्र पर शंका करते थे।
महिला ने कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये गए मृत्युपूर्व कथन (डाइंग डिक्लेरेशन) में ससुराल वालों की तिरस्कारपूर्ण भाषा के कारण स्वयं पर केरोसिन डालकर आग लगाने की बात स्वीकार की। मृतका के माता-पिता और भाई के बयानों में पुष्टि हुई कि अक्सर उसके साथ झगड़े होते थे और उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था। शेष ञ्चपेज ४
जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने धारा 306 आईपीसी की व्याख्या करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण सिद्ध करने यह प्रमाणित करना होता है कि आरोपी ने उकसाया, षड्यंत्र किया, या जानबूझकर मजबूर किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह को 12 वर्ष हो चुके थे, इसलिए धारा 113 ए के तहत सात वर्षों के भीतर आत्महत्या पर लागू होने वाला विधिक अनुमान इस मामले में नहीं लगाया जा सकता। ‘क्रोध या भावावेश में कहे गए शब्द, यदि उनकी मंशा ऐसी नहीं हो, तो उन्हें आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा नहीं माना जा सकता।’
अपीलकर्ता कमल कुमार साहू और उसके पिता की ओर से अधिवक्ता अनुजा शर्मा ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि घटना से ठीक पहले किसी भी प्रकार की तत्काल उकसाने वाली या उत्प्रेरक बात नहीं हुई थी, जो आत्महत्या के लिए कानूनी रूप से आवश्यक मानी जाती है।
अभियोजन पक्ष आत्महत्या के लिए आवश्यक दुष्प्रेरण सिद्ध नहीं कर पाया। शासन की ओर से पैनल अधिवक्ता आरसीएस देव ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं जिससे यह साबित होता है कि आरोपियों ने मृतका को प्रताड़ित किया और उसे आत्महत्या के लिए विवश किया।
Updated on:
06 Jul 2025 12:00 pm
Published on:
06 Jul 2025 11:59 am