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यादव समाज में कृष्ण व सुदामा की दोस्ती से प्रेरित आज भी है मितान की परंपरा

एक बार मितान बनाने के बाद मृत्यु समय तक का बन जाता संबंध

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यादव समाज में कृष्ण व सुदामा की दोस्ती से प्रेरित आज भी है मितान की परंपरा

यादव समाज में कृष्ण व सुदामा की दोस्ती से प्रेरित आज भी है मितान की परंपरा

बिलासपुर- यादव समाज में मितान की परंपरा सालों पुरानी है। जिले में भी यादव समाज मितान योजना की परंपरा निभा रहे हैं। एक बार कोई परिवार किसी से का मितान बनता है तो वह मृत्यु तक उसे निभाते हैं। यह परंपरा द्वापर युग के कृष्ण और सुदामा की दोस्ती से प्रेरित है, जिसका निर्वहन यादव समाज आज तक कर रहे है। इसमें मितान का साथ हमेशा रहता है।

समाज के सुनील यादव ने बताया कि 1998 में उन्होंने डॉ. आनंद कश्यप के साथ मितान की परंपरा को किया था। उस दौरान वे कक्षा 11वीं में थे। इसके बाद से दोनों के घर में आना जाना और खाना-पीना शुरू हो गया। यानी एक परिवार की तरह दोनों के घरों में एक रिश्ता जैसा जुड़ गया। इसके बाद से अब तक 25 वर्ष हो रहे हैं। वे इस परंपरा को जीवित रखते हुए उसे निभा रहे हैं। एक बार मितान बनाने के बाद मृत्यु समय तक का सबन्ध बन जाता है। मितान के घर में चाहे जन्म संस्कार हो या विवाह संस्कार या फिर मृत्यु सगे भाई, परिवार व रिश्तेदार की भूमिका में मितान होते है।

सीताराम मितान के संबोधन से रिश्ते की हो जाती है शुरुवात

यादव समाज के लोगों ने बताया कि भोजली पर्व में भोजली कान में एक दूसरे के लगाकर सीताराम मितान के संबोधन के साथ मितान रिश्ते की शुरुवात हो जाती है। इसके साथ ही सत्यनारायण कथा कराकर आपस मे नारियल लेन देन कर मितान बनाया जाता है। साथ ही बताया कि इस परंपरा में 4 प्रकार के मितान है जैसे मितान, गिया, महाप्रसाद और भोजली के नामों से छत्तीसगढ़ में मित्र को जाना जाता है।

जन्म एक ही तिथि होने से भी मित्र बनाने की होती है परंपरा

मितान बनाने के लिए प्रायः देखा जाता है कि एक जैसे आदत व्यवहार, शक्ल-सूरत व माता पिता की सहमति से होता है। या तो नजदीकी आने से इसके अलावा जन्म का एक ही तिथि होने को भी कारण बनाकर गिया मित्र बनाने की परंपरा छत्तीसगढ़ के अनेक जातियों जिसमे यादव, साहू, कुर्मी, आदिवासी व अन्य वर्गों में होती है।