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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: PHE भर्ती नियम को अवैधानिक पाकर किया निरस्त, कहा – बीई डिग्री वाले ज्यादा योग्य…

Bilaspur High Court: लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) में इंजीनियर भर्ती नियम को हाईकोर्ट ने निरस्त किया है। कोर्ट ने कहा बीई डिग्री वाले ज्यादा योग्य हैं।

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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला (Photo source- Patrika)

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला (Photo source- Patrika)

CG High Court:लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) में इंजीनियर भर्ती नियम को हाईकोर्ट ने निरस्त किया है। कोर्ट ने कहा बीई डिग्री वाले ज्यादा योग्य हैं। परंतु इस बार मात्र डिप्लोमा धारकों को पात्र घोषित कर देना एक असमान, भेदभावपूर्ण तथा अनुचित निर्णय है। संबंधित भर्ती नियमों को संविधान के विरुद्ध घोषित करते हुए कोर्ट ने उन्हें मनमाना ठहराया।

पीएचई में इंजीनियर भर्ती प्रक्रिया के विरुद्ध आवेदक धगेन्द्र कुमार साहू ने वकील प्रतिभा साहू के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार एवं संबंधित विभाग द्वारा उप अभियंता सिविल/ मैकेनिकल/ इलेक्ट्रिकल पद पर नियुक्ति के लिए बनाए गए भर्ती नियमों को याचिका में चुनौती दी गई।

CG High Court: बीई पास आवेदकों को पात्र नहीं माना था विभाग ने

पीएचई ने नियमों के तहत केवल डिप्लोमा धारकों को भर्ती का पात्र माना। जबकि बी.ई. डिग्रीधारी उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराया गया था। याचिकाकर्ता ने अपने तर्कों में कहा कि वर्ष 2016 तक जब भी उक्त पदों पर भर्ती की गई, तब न केवल डिप्लोमा धारकों के साथ बी.ई. डिग्रीधारकों को भी नियुक्त किया जाता था, भले ही नियमों में डिप्लोमा की शर्त उल्लेखित रही हो।

यह एक स्थापित प्रक्रिया थी और दोनों प्रकार के उम्मीदवारों को समान रूप से अवसर दिया जाता था। परंतु इस बार सरकार और संबंधित विभाग द्वारा पहली बार केवल डिप्लोमा धारकों तक पात्रता सीमित कर देना एक पक्षपातपूर्ण, भेदभावपूर्ण और मनमानी कार्यवाही थी।

बीई-डिप्लोमा होल्डर, दोनों को अवसर मिले

याचिका पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में गुरुवार को सुनवाई हुई। दोनों पक्षों की विस्तृत बहस सुनने के उपरांत खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि बीई. डिग्रीधारी उम्मीदवार तकनीकी रूप से अधिक योग्य होते हैं, और उन्हें ऐसे पदों से वंचित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। न्यायालय ने यह भी माना कि सरकार द्वारा वर्षों से बीई. एवं डिप्लोमा धारकों दोनों को नियुक्त करने की परंपरा रही है।