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‘102 Not Out’ Box Office : आज भी कायम है अमिताभ-ऋषि का जादू! पहले दिन की सधी शुरुआत, कमाए…

उम्मीद जताई जा रही है कि पहले वीकेंड में फिल्म की ओर अच्छी ग्रोथ देखने को मिल सकती है।

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Amit Kumar Singh

May 06, 2018

102 not out

102 not out

27 साल बाद सिल्वर स्क्रिन पर एक साथ वापसी कर रहे अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर का जादू आज भी बरकरार है। मूवी ने पहले दिन करीब ३.५२ करोड़ रुपए कमा लिए है। फिल्म समीक्षकों के अनुसार ये सधी हुई शुरुआत है।उम्मीद जताई जा रही है कि पहले वीकेंड में फिल्म को और अच्छी ग्रोथ देखने को मिल सकती है।

फिल्म समीक्षको की राय
अक्सर हम अपने आस-पास देखते हैं कि जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है तो वह खुद को बूढ़ा मानने लगता है। उसकी सोच पर भी बुढ़ापे का आवरण आ जाता है। इस वजह से वह जिंदगी का लुत्फ उठाने के बजाय उसे ढोने लगता है। वहीं, दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो इस फिलॉसफी में यकीन रखते हैं कि 'उम्र महज एक संख्या है और कुछ नहीं...।' इसी फलसफे पर आधारित उमेश शुक्ला की फिल्म '१०२ नॉट आउट' पिता-पुत्र की असाधारण कहानी है, जो कि मनोरंजन के साथ जिंदगी को जिंदादिली के साथ जीने का संदेश देती है।

स्क्रिप्ट फिल्म का प्लॉट लेखक सौम्य जोशी के इसी शीर्षक के गुजराती नाटक पर बेस्ड है। कहानी में मुंबई के विले पार्ले ईस्ट में १०२ वर्षीय दत्तात्रय वखारिया (अमिताभ बच्चन) अपने ७५ साल के बेटे बाबूलाल (ऋषि कपूर) के साथ रहते हैं। दत्तात्रय १०२ साल के होने के बावजूद २६ साल के युवा जैसी ऊर्जा व उमंग रखते हैं और उन्हें जिंदगी को बिना किसी तनाव के मजेदार अंदाज में जीने में यकीन है। वहीं, बाबू ने बुढ़ापे को ओढ़ लिया है। उन्होंने अपने आस-पास ऐसा ऑरा बना लिया है, जिससे उनमें नकारात्मकता और खीझ बढ़ गई है। एक दिन दत्तात्रय घर आकर बाबू को बताते हैं कि वह दुनिया में सबसे ज्यादा जीने वाले व्यक्ति का रिकॉर्ड (११८ साल, ३ महीने, २८ दिन) तोडऩा चाहते हैं, जो कि चीन के एक शख्स के नाम है। लेकिन दत्तात्रय को लगता है कि उनके रिकॉर्ड बनाने के मकसद में बाबू बाधक है, क्योंकि जिंदगी के प्रति उसका नीरस रवैया माहौल को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में वह बेटे को वृद्धाश्रम भेजना तय करते हैं। जब वह जाने से मना कर देता है तो दत्तात्रय उसके सामने एक के बाद एक शर्त रखते जाते हैं।

एक्टिंग

अमिताभ और ऋषि इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकार हैं और इसमें कोई दोराय नहीं कि दोनों ने इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है। अमिताभ ने १०२ साल के खुशदिल इंसान को पर्दे पर बखूबी जीवंत किया है और संवादों में गुजराती लहजा भी दिलचस्प अंदाज में पकड़ा है। ऋषि भी अमिताभ से कदम से कदम मिलाकर चले हैं। दोनों के बीच के दृश्य कभी हंसाते हैं तो कभी भावुक कर देते हैं। फिल्म में इन दोनों के अलावा तीसरा किरदार धीरू है, जिसे जिमित त्रिवेदी ने फन एलीमेंट के साथ शानदार ढंग से परफॉर्म किया है।

डायरेक्शन
टाइटल की तरह महज १०२ मिनट लंबी फिल्म में सौम्य जोशी लिखित कहानी दिल को छू लेती है। स्क्रीनप्ले अच्छा है, पर थोड़ा टाइट किया जा सकता था। डायलॉग्स इंटरेस्टिंग हैं। उमेश शुक्ला ने अपने निर्देशकीय दृष्टिकोण से बुजुर्गों पर बेस्ड फिल्म को अलग आयाम देने की कोशिश की है। वह फिल्म को कॉमिक अंदाज में शुरुआत देकर भावनात्मक सफर पर ले गए हैं। कुछ सीन वाकई भावुक कर देते हैं। हालांकि रफ्तार थोड़ी धीमी है। ऑरिजिनल व बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है।