
अब 'बैजू बावरा' के रीमेक की सुगबुगाहट, रणबीर कपूर का नाम आया सामने
-दिनेश ठाकुर
क्लासिक रचनाओं के साथ, चाहे वे किसी भी क्षेत्र की हों, छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। जैसे ताजमहल, एफिल टावर, कुतुब मीनार और लाल किले को दोबारा नहीं बनाया जा सकता, उसी तरह 'कागज के फूल', 'गाइड', 'प्यासा', 'मुगले-आजम', 'शोले' जैसी क्लासिक फिल्में भी दोबारा नहीं बन सकतीं। फिर भी कुछ साल से क्लासिक फिल्मों से छेड़छाड़ लाइलाज मर्ज बना हुआ है। रीमेक पर रीमेक बन रहे हैं, जिनमें मूल फिल्म की आत्मा कहीं महसूस नहीं होती। अब 1952 की 'बैजू बावरा' की बारी है।
फिल्मों में भव्यता के लिए मशहूर संजय लीला भंसाली इस फिल्म के रीमेक की तैयारी में हैं। इसकी नायिका के तौर पर तो दीपिका पादुकोण उनके दिमाग में हैं (क्योंकि दीपिका के साथ वे 'गोलियों की रासलीला', 'बाजीराव मस्तानी', 'पद्मावत' बना चुके हैं और इन्हें किसी भी किरदार में फिट कर सकते हैं), लेकिन बैजू के किरदार के लिए उधेड़बुन चल रही है। मूल फिल्म में यह किरदार अदा कर भारत भूषण अमर हो गए थे। पहले भंसाली का इरादा रणवीर सिंह को बैजू बनाने का था, फिर ऋतिक रोशन पर गौर किया गया और अब उनकी नजरें रणबीर कपूर पर हैं। लॉकडाउन ने भंसाली की 'गंगूबाई काठियावाड़ी' की शूटिंग अटका रखी है। यह पूरी होने के बाद ही उनकी 'बैजू बावरा' की तस्वीर साफ होगी।
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सोलहवीं सदी के महान गायक पंडित बैजनाथ पर दिग्गज निर्देशक विजय भट्ट की 'बैजू बावरा' को भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता है। इसी फिल्म से मीना कुमारी संवेदनशील, संजीदा अभिनेत्री के तौर पर उभरीं। उन्होंने बैजू (भारत भूषण) की प्रेमिका गौरी का किरदार अदा किया था। अकबर के नौ रतनों में से एक गायक तानसेन के किरदार में थे सुरेंद्र, जबकि कुलदीप कौर डकैत रूपमती बनी थीं। पंडित बैजनाथ से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्यों को फिल्म में बदल दिया गया था, फिर भी तानसेन से मुकाबला करने वाले इस गायक के दौर को विजय भट्ट ने पर्दे पर साकार कर दिया था। नौशाद के संगीत ने बैजू की कहानी में जैसे जान फूंक दी। हर गाना बेहद सुरीला, नगीने की तरह कहानी के हार में जड़ा हुआ। नौशाद ने एक बार बताया था कि फिल्म के 'मोहे भूल गए सांवरिया' की रिकॉर्डिंग के दौरान लता मंगेशकर स्टूडियो में गश खाकर गिर पड़ी थीं। होश में आने पर उन्होंने कहा- 'इस गाने की धुन का दर्द मेरे दिल में उतर गया था।' इस गाने ने ही नहीं, फिल्म के दूसरे गानों- 'ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द बने मेरे नाले', 'तू गंगा की मौज', 'दूर कोई गाए', 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज', 'बचपन की मोहब्बत को' और 'झूले में पवन के आई बहार' ने भी उस जमाने में धूम मचा दी थी। ये सदाबहार गाने आज भी सुनने वालों की धड़कनें बढ़ा देते हैं। फिल्म के 13 गानों के लिए नौशाद ने लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के अलावा उस्ताद आमिर खान, डी.वी. पलुस्कर तथा शमशाद बेगम की आवाजों का इस्तेमाल किया। नौशाद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का इकलौता फिल्मफेयर अवॉर्ड 'बैजू बावरा' के लिए मिला था।
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जाहिर है, संजय लीला भंसाली के लिए 'बैजू बावरा' के रीमेक का संगीतकार चुनना मुख्य कलाकार चुनने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा। चूंकि पंडित बैजनाथ की जिंदगी की धुरी ही संगीत है, इसलिए इस मोर्चे पर भंसाली अपनी पिछली फिल्मों की तरह खानापूर्ति नहीं कर सकते।
Published on:
18 May 2020 08:26 pm
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