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‘चौदहवीं का चांद’ हो से शूरू हुआ वहीदा और गुरु दत्त का इश्क मौत पर खत्म हो गया..

हिंदी सिनेमा की सदाबहार हीरोइन वहीदा रहमान (waheeda rehman) 83 साल की हो चुकी हैं    

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Vivhav Shukla

Feb 03, 2020

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नई दिल्ली। साल 1960 में एक फिल्म आई था। नाम था ‘चौदहवीं का चाँद’(chaudhvin ka chand)। फिल्म में लीड रोल में थे गुरु दत्त (Guru Dutt) और फिल्म में हीरोइन थी वहीदा रहमान(waheeda rehman) । आज इसी हीरोइन का बर्थड़े है। हिंदी सिनेमा की सदाबहार हीरोइन वहीदा रहमान (waheeda rehman) 82 साल की हो चुकी हैं। फिल्म ‘चौदहवीं का चाँद’ में चांद जिसे कहा गया है वो वहीदा ही है। वहीदा जी (waheeda rehman) का जन्म 3 फरवरी 1938 को उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ था।वहीदा रहमान ने हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, बंगाली और मलयालम फिल्मों में भी काम किया है। लेकिन बचपन में वो एक डॉक्टर बनना चाहती था। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था।

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बॉलीवुड में आने से पहले वहीदा तेलुगु सिनेमा की स्टार थी। एक दिन अचानक उनके पास हिंदी सिनेमा का ऑफर आ गया। ये ऑफर देने वाले थे गुरु दत्त। उन दिनों दत्त साहब सीआईडी फिल्म बना रहे थे। इस फिल्म में उन्होंने वहीदा को मौका दिया।इस फिल्म में वहीदा एक खलनायिका का रोल अदा किया था। फिल्म आई और जिसने भी मासूम सी वाहिदा को देखा बस देखता रह गया। साल 1957 में गुरु दत्त ने अपनी फिल्म प्यासा में फिर से वाहिदा को कॉस्ट किया। फिल्म रिलीज हुई तो कई रिकार्ड बनाए कई तोडे। इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा एक नई क्रांति ला दी।

बताया जाता है कि गुरु दत्त (guru dutt) से वहीदा ने तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट साइन करवाया था। जिसमें उन्होंने फिल्मों में कपड़े अपने पंसद से पहनने की शर्त रखी थी।गुरू मान गए। फिर दोनों काफी करीब आ गए और दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। लेकिन दिक्कत ये थी कि गुरु दत्त पहले से ही शादी शुदा थे।

प्यार तो प्यार होता है वो भला शादी, धर्म कहा देखता है। वाहीदा से गुरू को इस कदर प्यार हुआ की शादी के चार साल बाद ही उन्होंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया।गुरू और वाहिदा करीब आ गए लेकिन किस्मत को ये भी मंजूर नहीं था। वहीदा के परिवार वाले को गुरू पसंद नहीं थे वहीदा के परिवार के लोग भी नहीं चाहते थे कि वहींदा एक हिंदू से शादी करें। घर बचाने के लिए वहीदा ने गुरू दत्त से दूरी बना ली।

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वाहीदा के दूर जाने के बाद गुरु दत्त पूरी तरह टूट गए। इतना ही नहीं उनकी पत्नी ने उनकी बेटी भी उनसे छीन ली। इतना सब गुरू झेल नहीं पाए और साल 1964 में आत्महत्या कर ली। ये खबर जब वहीदा को पता चलाी तो वो सदमे में चली गईं। इस दंश को भूलने में वाहिदा को सालों लग गए ।