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सचिन वाझे समेत कई एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट पर बन चुकी हैं फिल्में

सचिन वाझे के ‘कारनामों’ पर मराठी में ‘रेगे’ (2014) नाम की फिल्म बन चुकी है। इसमें वाझे का किरदार पुष्कर श्रोत्री ने अदा किया। पुष्कर इससे पहले संजय दत्त की ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में प्रोफेसर के किरदार में नजर आए थे। ‘रेगे’ में वाझे के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट उस्ताद प्रदीप शर्मा के किरदार में महेश मांजरेकर हैं।

Mar 23, 2021 / 03:01 pm

पवन राणा

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Movies on encounter Specialists

-दिनेश ठाकुर
इन दिनों सचिन वाझे सुर्खियों में हैं। देश ने मुम्बई पुलिस के इस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के बारे में अब जाना। महाराष्ट्र में वह कई साल से जाना-पहचाना नाम है। इस शख्स के ‘कारनामों’ पर मराठी में ‘रेगे’ (2014) नाम की फिल्म बन चुकी है। इसमें सचिन वाझे का किरदार पुष्कर श्रोत्री ने अदा किया। पुष्कर इससे पहले संजय दत्त की ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में प्रोफेसर के किरदार में नजर आए थे। ‘रेगे’ में वाझे के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट उस्ताद प्रदीप शर्मा के किरदार में महेश मांजरेकर हैं। फिल्म में अनिरुद्ध रेगे नाम के कॉलेज छात्र की कहानी है। उसके डॉक्टर पिता उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं, लेकिन वह अंडरवर्ल्ड से जुड़कर उलटे-सीधे कामों में रोमांच महसूस करता है। इस गुमराह युवक को सुधारने के रास्ते बंद नहीं हुए थे। फिर भी प्रदीप शर्मा और सचिन वाझे उसे ‘ठिकाने लगाने’ की फिराक में हैं। एक सीन में वाझे अपने सीनियर प्रदीप को उकसाता है- ‘सचिन तेंदुलकर ने शतकों का शतक पूरा करने के लिए एक साल इंतजार किया। आप भी 99 के एनकाउंटर के बाद शतक पूरा करने के इंतजार में हैं।’ अनिरुद्ध रेगे को उसकी सालगिरह पर ‘ठिकाने लगाकर’ यह शतक पूरा होता है।

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प्रदीप शर्मा से सीखे मुठभेड़ के गुर
मुजरिमों और पुलिस के मुठभेड़ विशेषज्ञों में ‘तू जहां-जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा’ वाला रिश्ता है। अस्सी के दशक में जब अंडरवर्ल्ड के कई ‘भाइयों’ और ‘भाउओं’ ने मुम्बई को खूनी खेल का मैदान बनाया, कई मुठभेड़ विशेषज्ञों का उदय हुआ। इनमें प्रदीप शर्मा का नाम सबसे ऊपर है। उन्होंने मुठभेड़ों में सबसे ज्यादा 312 मुजरिमों का ‘काम तमाम’ किया। इन्हीं से सचिन वाझे ने मुठभेड़ के गुर सीखे। उसके खाते में 63 मुजरिमों का सफाया दर्ज है। इनमें अंडरवर्ल्ड के कई गुर्गे शामिल हैं।

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दया नायक पर ‘अब तक छप्पन’
मुम्बई पुलिस के एक और बड़े एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक पर ‘अब तक छप्पन’ नाम की फिल्म बन चुकी है। इसमें यह किरदार नाना पाटेकर ने अदा किया। यह फिल्म ‘लोहा ही लोहे को काटता है’ और ‘जानवरों से लड़ने के लिए जानवर बनना पड़ता है’ की हिमायत करती है। हत्याएं करने का अघोषित लाइसेंस रखने वाले क्या सिर्फ मुजरिमों को ही ठिकाने लगाते हैं? क्या स्वार्थ साधने के लिए फर्जी मुठभेड़ को अंजाम नहीं दिया जाता? इन सवालों को ‘अब तक छप्पन’ जैसी कई फिल्मों में गोल कर दिया गया। वैसे एनकाउंटर पर ‘अब तक छप्पन’ को हिन्दी की सबसे उम्दा फिल्म माना जाता है। इसका निहायत कमजोर संस्करण ‘अब तक छप्पन 2’ भी बन चुका है। हाल ही आई ‘मुम्बई सागा’ में इमरान हाशमी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के किरदार में हैं।

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‘एनकाउंटर : द किलिंग’ थोड़ी हटकर
अंडरवर्ल्ड पर बनीं ज्यादातर फिल्मों में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के किस्से जोड़े गए। मुम्बई के लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स में 1991 की मुठभेड़ में गैंगस्टर माया डोलास मारा गया था। वह दाऊद इब्राहिम के नेटवर्क का हिस्सा था। इस मुठभेड़ पर ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ बन चुकी है। ‘शूटआउट एट वडाला’, ‘बाटला हाउस’, ‘रिस्क’ आदि में भी एनकाउंटर का सिलसिला है। ‘एनकाउंटर : द किलिंग’ पुलिस एनकाउंटर पर कुछ अलग तरह की फिल्म है। इसमें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट नसीरुद्दीन शाह एक लड़के को एनकाउंटर में मारने के बाद उसके परिजनों की खोज में निकलते हैं और इस तल्ख हकीकत से रू-ब-रू होते हैं कि किस तरह माता-पिता की अनदेखी से उनके बच्चे जुर्म की दुनिया से जुड़ते हैं।

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