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द गाजी अटैक: आईएनएस विक्रांत ने पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी के ऐसे उड़ाए थे परखच्चे, आज तक पता नहीं चला

1971 की जंग की स्टोरी पर बॉलीवुड फिल्म 'गाजी अटैक' बन चुकी है। इस मूवी में भारतीय के आईएनएस विक्रांत और पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी के बीच की आँख मिचौली और जंग को दिखाया गया है।

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the ghazi attack

the ghazi attack

पुलवामा अटैक और एयरस्ट्राइक के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। हाल में पाकिस्तान ने भारत पर यह आरोप लगाया है कि एक भारत की ओर से उनकी समुद्री सीमा में घुसैपठ की गई है। दोनों देशों की समुद्री सीमा में बढ़ रहे दबाव नया नहीं है। ऐसी ही 1971 की जंग की स्टोरी पर बॉलीवुड फिल्म 'गाजी अटैक' बन चुकी है। इस मूवी में भारतीय के आईएनएस विक्रांत और पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी के बीच की आँख मिचौली और जंग को दिखाया गया है।

1971 की जंग में पाकिस्तान जानता था कि युद्ध की तस्वीर बदलने वाला फैक्टर है भारत का आईएनएस विक्रांत। इस लड़ाई में पाकिस्तान ने आईएनएस विक्रांत को डुबोने के लिए अपनी नेवल सबमरीन गाजी को भेजा था, जिसे बताया जाता है कि 3 और 4 दिसंबर की मध्यरात्रि को डुबो दिया गया था। पीएनएस गाजी-71 के युद्ध में पाकिस्तान का सबसे छुपा हुआ घातक हथियार था। उस समय भारत के पास एक भी पनडुब्बी नहीं थी। ऐसे में गाजी को रोकना चैलेजिंग काम था। उससे भी बड़ी चुनौती थी गाजी का मनोवैज्ञानिक खौफ। गाजी अपने मिशन में कामयाब हो जाती तो यह मनोवैज्ञानिक रुप से भारत के लिए बड़ी हार होती। जिसका असर 1971 की लड़ाई के नतीजे पर भी पड़ता।







गाजी में 20 हजार किलोमीटर लंबा सफर करने की क्षमता थी। इसीलिए 71 का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले 14 नवंबर से 22 नवंबर के बीच गाजी को चुपचाप कराची से बंगाल की खाड़ी की तरफ रवाना कर दिया गया। लेकिन उसका असल मिशन विमान वाहक पोत विक्रांत को खोजकर तबाह करना। भारतीय नौसेना को सिग्नल इंटरसेप्ट से पता चल चुका था कि गाजी कराची से बंगाल की खाड़ी के बीच कहीं समंदर में ही है। पूर्वी पाकिस्तान की समुद्री घेराबंदी के लिए विशाखापत्तनम के बंदरगाह से निकल चुके विक्रांत के लिए यह बुरी खबर थी।

इसी मौके पर पूर्वी नेवल कमांड के वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने बड़ा दांव खेला। उन्होंने पनडुब्बी रोधी क्षमता से लैस आईएनएस राजपूत को आईएनएस विक्रांत होने का नाटक करने के लिए कहा। आईएनएस राजपूत से हैवी वायरलेस मैसेज भेजे जाने लगे। साथ ही मद्रास नेवल बेस को कहा गया कि उनकी तरफ बड़ा युद्धपोत आने वाला है। एडमिरल एन कृष्णन जानते थे कि ये सारी कोशिश पाकिस्तानी नौसेना और भारत में मौजूद पाकिस्तानी जासूसों से बच नहीं पाएगी। पाकिस्तान को जरूर ऐसा लगेगा कि विक्रांत जैसा कोई बड़ा युद्धपोत विशाखापत्तनम में है। 26 नवंबर को पानी में,घात लगाए गाजी को अपने कमांड सेंटर से सूचना मिली कि आईएनएस विक्रांत विशाखापत्तनम में ही है। लिहाजा, गाजी विक्रांत को डुबोने के इरादे से विशाखापत्तनम की तरफ बढ़ने लगी। जैसे ही भारतीय नौसेना को गाजी के मद्रास पहुंचने की अंदेशा हुआ, वैसे ही आईएनएस विक्रांत को बचाने का मिशन भी शुरू हो गया।

अमरीका ने अपनी डायब्लो पनडुब्बी को 1965 की भारत- पाक जंग से कुछ ही समय पहले पाकिस्तान को पट्टे पर दिया था। पाकिस्तान ने इसका नाम गाजी रखा था। 1965 की जंग में गाजी का इतना खौफ था कि भारतीय नौसेना ने कराची पर हमले का प्लान टाल दिया था। गाजी का ये खौफ 71 की जंग पर भी मंडरा रहा था। मुश्किल ये भी थी कि जंग शुरू होने से कुछ ही दिन पहले विक्रांत के बॉयलर में दरार आ गई थी। इस वजह से उसकी रफ्तार भी कम रह गई थी। इतनी कम रफ्तार में वो कभी भी किसी भी पनडुब्बी का शिकार बन सकता था। इसीलिए, गाजी के साए से विक्रांत को दूर रखने के लिए उसे चुपचाप एक गुप्त ठिकाने की तरफ रवाना कर दिया गया।

ये सीक्रेट जगह मद्रास से 1000 मील दूर अंडमान-निकोबार में थी। तब तक गाजी को डुबोने की योजना पर काम शुरू हो चुका था। अपने कमांड से विक्रांत के विशाखापत्तनम के पास होने की खुफिया सूचना पाकर पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी निडर होकर वहां तक पहुंच गई थी। इसी मौके पर विशाखापत्तनम के समुद्र तट से कुछ दूर पर आईएनएस राजपूत के कैप्टन लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने समुद्र में बड़ी हलचल देखी। उन्होंने अनुमान लगाया कि इतनी हलचल किसी पनडुब्बी के कारण ही हो सकती है। इसलिए उन्होंने अपने नौसैनिकों को समंदर में पनडुब्बी नष्ट करने वाले दो डेफ्थ चार्जर डालने का आदेश दिया। पानी के भीतर पहुंच कर डेप्थ चार्जर ने अपना काम कर दिया। पानी के भीतर हुए धमाके ने गाजी को समंदर में ही तबाह कर दिया।

1971 की जंग के इस सुनहरे इतिहास के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि सिर्फ जमीनी बार्डर पर ही नहीं बल्कि सुमद्री सीमा पर मुठभेड़ में भी भारत, पाकिस्तान पर भारी पड़ा है।