
Manoj Kumar Struggle Story
Manoj Kumar Struggle Story: 'भारत कुमार' के नाम से प्रसिद्ध बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार नहीं रहे। शुक्रवार तड़के मुंबई के एक अस्पताल में एक्टर का निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। मनोज कुमार का सफर जितना चमकदार रहा, उनका शुरुआती दौर उतना ही कठिन और संघर्षपूर्ण था। मनोज कुमार कैसे बने इतने बड़े सुपरस्टार? आइए उनके फ़िल्मी सफर के बारे में जानते हैं।
9 अक्टूबर 1956 को मनोज कुमार महज 19 साल की उम्र में आंखों में सितारों जैसा सपना लेकर मुंबई पहुंचे थे। लेकिन यह सफर उतना आसान नहीं था। न कोई पहचान, न सिफारिश, सिर्फ कुछ था तो वह उनका जुनून और विश्वास था। शहर के चकाचौंध के पीछे छिपी कठिनाइयों से उन्होंने जूझना शुरू किया। कई बार भूखे सोना पड़ा, कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा।
मनोज कुमार के लिए हर दिन किसी परीक्षा से कम नहीं था। स्टूडियो के चक्कर काटते-काटते उन्होंने अपने आत्मबल को कभी गिरने नहीं दिया। फिर उन्हें मीना कुमारी जैसे बड़े कलाकारों के साथ छोटा काम मिलता गया और उनकी फिल्मी करियर की गाड़ी चल पड़ी। लेकिन अब भी वह गुमनामी में ही थे।
मनोज कुमार की पहली फिल्म साल 1957 में आई ‘फैशन’ थी, खास बात है उस वक्त उनकी उम्र महज 19 वर्ष की थी। उन्होंने 19 की उम्र में 90 साल के भिखारी का किरदार निभाया था।
मनोज कुमार का फिल्मी करियर साल 1961 में आई फिल्म 'कांच की गुड़िया' से ब्रेक मिला। उन्होंने इस फिल्म में बतौर लीड एक्टर काम किया। तब दर्शकों को यह फिल्म काफी पसंद आई थी।
इसके बाद मनोज कुमार की फ़िल्मी सफर चल पड़ा और वे कभी पीछे मुड़कर नहीं दिखे। विजय भट्ट की फिल्म 'हरियाली और रास्ता' आई, 1962 में बनी फिल्म का निर्देशन और निर्माण विजय भट्ट ने किया है। इसमें मनोज कुमार के साथ माला सिन्हा मुख्य भूमिका में थीं।
करीब 40 साल के लंबे फिल्मी करियर में मनोज कुमार ने अभिनय के हर हिस्से को छुआ। उनकी फिल्मों की खासियत थी कि लोग आसानी से जुड़ाव महसूस करते थे।
‘कांच की गुड़िया’ के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘पिया मिलन की आस’, ‘सुहाग सिंदूर’, ‘रेशमी रूमाल’ पहली बड़ी व्यावसायिक सफलता वाली फिल्म के बाद मनोज कुमार ‘शादी’, ‘डॉ. विद्या’ और ‘गृहस्थी’ में नजर आए। तीनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और दर्शकों को खूब पसंद आई। मुख्य भूमिका के रूप में उनकी पहली बड़ी सफलता वाली फिल्म 1964 में आई राज खोसला की फिल्म ‘वो कौन थी? फिल्म के गानों को खूब पसंद किया गया, जिनमें ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिमझिम’ है। दोनों को ही लता मंगेशकर ने गया था।।
साल 1965 कुमार के स्टारडम की ओर बढ़ने वाला साल साबित हुआ। उनकी पहली देशभक्ति वाली फिल्म ‘शहीद’ थी, जो स्वतंत्रता क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन पर आधारित थी। खास बात है कि इस फिल्म की तारीफ दर्शकों के साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने भी की थी। इसके बाद ‘हिमालय की गोद में’ और ‘गुमनाम’ आई। आशा पारेख के साथ वह ‘दो बदन’ में काम किए और देखते ही देखते छा गए थे। ‘सावन की घटा’ में उनकी केमिस्ट्री शर्मिला टैगोर साथ पसंद की गई थी।
इसके अलावा वह ‘नील कमल’, ‘अनीता’, ‘आदमी’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में काम किए, जिसमें उनके अभिनय को कभी नहीं भूला जा सकता। रोमांटिक, ड्रामा और सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों के बाद मनोज कुमार ने ‘क्रांति’, ‘उपकार’ और ‘पूरब और पश्चिम’ के साथ देशभक्ति फिल्मों की ओर लौटे। फिल्म में वह भारत की गाथा, संस्कृति, परंपरा को शानदार अंदाज में पेश करने में सफल हुए थे।
परिणाम ये रहा कि देश के साथ ही विदेश में भी खूब पसंद की गई। फिल्म के सुपरहिट गानों और मनोज कुमार के साथ सायरा बानो की जोड़ी ने कहानी को शानदार मुकाम पर पहुंचा दी। इसके बाद वह 1971 में ‘बलिदान’ और ‘बे-ईमान’ में काम किए और ‘शोर’ फिल्म का निर्देशन किए।
फिल्म 'शहीद' (1965) और फिर 'उपकार' (1967) जैसी फिल्मों ने उन्हें एक ऐसा मुकाम दिया, जहां से वो सिर्फ ऊपर ही बढ़ते चले गए। 'उपकार' में “जय जवान, जय किसान” की भावना को परदे पर जीवंत करने के बाद उन्हें ‘भारत कुमार’ का तमगा मिला, जो आज भी उनके नाम के साथ जुड़ा है।
मनोज कुमार का सफर सिर्फ एक अभिनेता का नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और देशभक्ति से ओतप्रोत एक इंसान की कहानी है। उनका जीवन हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो बिना किसी गॉडफादर के सिर्फ अपने सपनों और मेहनत के दम पर सफलता की ऊंचाइयों को छूना चाहता है।
यही कारण है कि आज एक्टर के निधन पर बॉलीवुड ही नहीं बल्कि पूरा देश शोकमय है। राष्ट्रपति से लेकर पीएम तक सभी ने शोक संवेदना व्यक्त की है।
Manoj Kumar Video Story
Published on:
04 Apr 2025 03:36 pm
बड़ी खबरें
View Allबॉलीवुड
मनोरंजन
ट्रेंडिंग
