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Heera Mandi: पिता को याद कर बोले भंसाली, मैं आज भी वहीं बैठा हूं, जहां वो मुझे छोड़कर गए थे

आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूं कि मैं तो बीते 25 साल से वहीं बैठा हूं, क्योंकि मैं पूरी जिंदगी मैं वहीं रहने का सपना देखता रहा और मुझे खुशी है कि मैं वहीं बैठकर अपना काम कर रहा हूं।

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Sanjay Leela Bhansali talks about his first web series Heeramandi

Sanjay Leela Bhansali

नई दिल्ली: संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) एक ऐसे निर्देशक हैं जिन्होंने अपने सिनेमा में भारतीय कहानियों को ही केंद्र बिंदु रखा है। वह हमेशा से अपनी फिल्मों के जरिये दुनिया को भारतीय सभ्यता, संस्कृति और विरासत से भी रुबरू करा रहे हैं। अब जहां उनकी फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जल्द रिलीज होने वाली है और वहीं, वो पहली वेब सीरीज ‘हीरा मंडी’ से डिजिटल डेब्यू करने जा रहे हैं।

'हीरामंडी' संजय लीला भंसाली के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। इसे वेबसीरिज के रूप में बनाया जाएगा। इसके लिए उन्होंने नेटफ्लिक्स के साथ करार किया है। हीरामंडी में वेश्या की स्टोरी दिखाई जाएगी।

पिता ने कहा- यहां बैठो हिलना मत
संजय लीला भंसाली ने कुछ दिनों पहले ही इंडस्ट्री में 25 साल पूरे किए हैं। संजय लीला भंसाली को सिनेमा अपने पिता से विरासत में मिला है। जिसे लेकर उनका कहना है कि जब मैं चार साल का था, मेरे पिता जी मुझे एक शूटिंग दिखाने ले गए थे। वह अपने दोस्तों से मिलने चले गए और मुझसे बोले कि मैं वहीं एक जगह पर बैठूा रहूं। उनके जाने के बाद मैं स्टूडियो में बैठा-बैठा सोच रहा था कि मेरे लिए इस जगह से ज्यादा सुकून भरी कोई और जगह हो ही नहीं सकती।

स्टूडियो किसी भी चीज से अच्छा लगा
वो स्टूडियो मुझे दुनिया की आरामदायक किसी भी चीज से अच्छा लगा। मुझे उस शाम की बस एक चीज याद है वह है मेरे पिता का आदेश- ‘यहां बैठो और हिलना मत और कहीं मत जाना। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूं कि मैं तो बीते 25 साल से वहीं बैठा हूं, क्योंकि मैं पूरी जिंदगी मैं वहीं रहने का सपना देखता रहा और मुझे खुशी है कि मैं वहीं, बैठकर अपना काम कर रहा हूं।

रौशनी की बौछार मेरे दिमाग पर पड़ती थी
संजय लीला भंसाली के सिनेमा में दिखने वाली भव्यता को लेकर उनका कहना है कि बचपन में किसी थिएटर में जाता था तो उन प्रोजेक्टर को देखता था जो परदे पर रोशनी की बौछार करते थे। यह बौछार मेरे दिमाग पर भी पड़ती थी और मेरा फिल्म से ध्यान उचट जाता था। मेरा दिमाग रोशनी की किरणों की तरफ चला जाता था और मुझसे कहता था- ठीक है, एक दिन मेरी कहानी भी इसी तरह लहराएगी।

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आज मुझे इस बात की खुशी है कि वो अपने बचपन का सपना पूरा कर सके। मैं नौ फिल्में बना चुका हूं और 10वीं बनाने जा रहा हूं और इसमें 25 साल बीत गए, अभी 25 साल और बिताने हैं।