ये भी पढ़ें 20th Kargil Vijay Diwas: जानिए कारगिल युद्ध के दौरान कैसे थे देश के हालात, जीत में आगरा की क्या थी भूमिका… 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज में थे तैनात
बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम पाल सिंह 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज के जवान थे। हरिओम पाल सिंह कहते थे कि मैदान में आकर मैं मोटा हो जाता हूं और एक जवान को मोटा नहीं होना चाहिए। इसलिए उन्होंने पहाड़ों पर और शियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाके में सरहदों की हिफाजत करते हुए अपनी ज्यादातर ड्यूटी पूरी की। हरिओम पाल सिंह 19 दिसम्बर 1986 को फौज में भर्ती हुए थे। हरिओम पाल सिंह एक शानदार फौजी थे। उन्होंने तीन युद्ध लड़े ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन मेघदूत और अपने अंतिम युद्ध ऑपरेशन विजय। 01 जुलाई 1999 में ऑपरेशन विजय के दौरान वे शहीद हो गए। ड्यूटी के दौरान उन्हें कई मैडल मिले थे, लेकिन स्पेशल सर्विस मैडल उन्हें मरणोपरांत मिला।
हरिओम की पत्नी गुड्डी देवी ने बताया कि हरिओम सिंह कारगिल युद्ध से पूर्व छुट्टियां बिताने अपने गाँव इटौआ आए थे। छुट्टियों के बीच में ही अचानक कंपनी कमांडर की तरफ से फरमान आने के बाद उन्हें कारगिल युद्ध में जाना पड़ा। आदेश मिलते ही वह 26 जून 1999 को ड्यूटी पर रवाना हो गए। इसके बाद परिवार के लोगों से उनकी कभी कोई बात नहीं हो सकी। फिर 2 जुलाई को उनके शहीद होने की खबर पहुंची जिससे पूरा परिवार टूट गया। लेकिन भारत सरकार ने शहीद के परिवार को घर चलाने के लिए उन्हें बरेली के डीडीपुरम में पेट्रोल पंप दिया है जिसे उनकी पत्नी गुड्डी देवी और बेटा प्रताप संचालित करते हैं। अब शहीद हरिओम का परिवार बरेली में ही रहता है।