
बुलंदशहर. कोविड संक्रमण काल में अन्नदाताओं ने बड़ी सूझबूझ के साथ एवं मेहनत करके खरीफ की कई फसलों का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया है। उत्तर प्रदेश में तिलहन की बहुत अधिक संभावनाएं रहती हैं फिर भी किसान सिंचित दशा में परंपरागत खेती को बढ़ावा अधिक देते हैं, तिलहनी फसलों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देते जिससे उत्पादन के ऊपर तो प्रभाव पड़ा ही है। साथ में गुणवत्ता युक्त तेल खाने को भी नहीं मिल रहा है, ऐसी स्थिति में किसान भाई सरसों की फसल का सही समय से बुवाई करके सही फसल प्रबंधन करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।
तिलहनी फसलों में प्रमुख रूप से सरसों की खेती की जाती है। प्रदेश में अनेक प्रयासों के बाद भी सरसों के क्षेत्रफल में वृद्धि नहीं हो पा रही है। इसका प्रमुख कारण है कि सिंचित क्षमता में वृद्धि के कारण अन्य महत्वपूर्ण फसलों के क्षेत्रफल बड़े हैं और तिलहनी फसलों का रकबा कम हुआ है। सरसों की खेती सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती है। उन्नत तकनीकी सलाह को अपनाकर किसान भाई अधिक उत्पादन ले सकते हैं।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी दिग्विजय सिंह ने बताया कि सिंचित दशा में सरसों की पीली प्रजातियां जिसमें बसंती, नरेंद्र स्वर्णा, पितांबरी, नरेंद्र सरसो-402, के- 88, पंत पीली सरसों-एक तथा पूसा डबल जीरो सरसों बहुत अच्छी किस्में हैं। यह पकने में कम समय भी लेती हैं तथा इनका उत्पादन भी अधिक होता है। इसमें तेल की मात्रा 45 प्रतिशत तक पाई जाती है और संपूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए बहुत अच्छी किस्में हैं। पीली सरसों की बुवाई अगेती करने पर बहुत अच्छा उत्पादन मिलता है।
प्रति हैक्टेयर 15 से 22 कुंतल उत्पादन
सरसों की काली किस्में नरेंद्र अगेती-चार, वरुणा,रोहिणी, उर्वशी, पूसा सरसो-28, पूसा सरसो-30, सीएल- 58, एवं सीएल - 60 इन किस्मों में इरयुसिक अम्ल की मात्रा बहुत ही न्यूनतम होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। यह सभी सिंचित क्षेत्र की अच्छी उन्नतशील अगेती प्रजातियां है। इनमें हानिकारक अम्लों की मात्रा भी कम पाई जाती है। प्रमुख रूप से ग्लूकोसिनलेट्स इसमें 30 पीपीएम से भी कम होता है। असिंचित क्षेत्र के लिए वैभव, आरजीएन- 298, पंत पीली सरसो- एक प्रजातियां संपूर्ण उत्तर प्रदेश एवं संपूर्ण मैदानी क्षेत्र के लिए अच्छी होती हैं। इसमें तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है और यह 120 से 135 दिन में तैयार हो जाती हैं प्रति हेक्टेयर में 15 से 22 कुंतल उत्पादन होता है।
क्षारीय एवं लवणी क्षेत्रों के लिए नरेंद्र राई, सीएस- 52, सीएस- 54 उपयुक्त किस्में है। यह 135 से 145 दिन पक कर तैयार हो जाती हैं और इनमें 18 से 22 क्वींटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। संकर प्रजातियां जिसमें सफेद रस्ट, डाउनी मिलडायू बीमारी तथा माहू कीट का प्रकोप बिल्कुल नहीं होता, तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है।
समय से बुवाई पर नहीं होता कीटों का प्रकोप
जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि समय से बुवाई करने पर सरसों में सफेद रस्ट, डाउनी मिलडायू बीमारी तथा सरसों की आरा मक्खी एवं माहू कीट का प्रकोप नहीं होता। आवश्यकता पड़ने पर समय- समय पर सिंचाई करते रहें। सरसो बहुत अधिक गहराई में बुआई न करें। किसान भाई यदि अगेती फसल की बुवाई कर रहे हैं तो खेतों में पानी भर के भी सरसो की बुआई की जा सकती है, जिसका उत्पादन बहुत अच्छा होता है। बहुत घनी फसल की बुवाई ना करें, जिससे कीट एवं बीमारियां का प्रकोप कम होगा और उत्पादन अच्छा होगा।
Published on:
27 Oct 2021 05:55 pm
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