
Kargil Vijay Diwas 2022 : आज हम कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं और अपने उन जांबाज जवानों को याद कर रहे हैं, जिनके शौर्य के कारण दुश्मन को धूल चटाते हुए कारगिल की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। उन्हें में से एक हैं परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव, जिन्होंने 17 गोलियां खाकर भी हार नहीं मानी और पाकिस्तानियों से लोहा लेते हुए विजय हासिल की। परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव बताते हैं कि उनके 20 साथी देश के लिए कुर्बान हो चुके थे और 17 गोलियों से उनका शरीर भी छलनी हो चुका था। लेकिन, इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और घायल अवस्था में भी वह पाकिस्तानी सेना से युद्ध लड़ते रहे और अंतत: उन्हें सफलता मिली।
परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव मूलरूप से बुलंदशहर के औरंगाबाद थाना क्षेत्र गांव अहीर के रहने वाले हैं। आर्मी से रिटायरमेंट के बाद से वह परिवार के साथ गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र स्थित लाजपत नगर में रह रहे हैं। अब वह स्कूल-कालेजों के स्टूडेंट्स को अपनी शौर्यगाथा के माध्यम से राष्ट्र भक्ति के प्रति जागरूक करने का कार्य करते हैं। बता दें कि योगेंद्र यादव के खून में ही राष्ट्रभक्ति है। उनके पिता करन सिंह यादव भी आर्मी में थे। उन्होंने भी पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी। वहीं उनके बड़े भाई जितेंद यादव भी आर्मी में रहे हैं।
'दुश्मन को बुलेट से ही नहीं, जोश और जज्बे से भी हरा सकते हैं'
परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव कारगिल युद्ध को याद करते हुए बताते हैं कि कारगिल के युद्ध में दुश्मन की उन्हें 17 गोलियां लगी थीं। लेकिन, इसके बावजूद उनके कदम पीछे नहीं हटे। वह गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी दुश्मन के हर वार का करारा जवाब देते रहे। आखिरकार पाकिस्तानी सेना को परास्त करने के बाद ही उन्होंने दम लिया। योगेंद्र का कहना है कि दुश्मनों को बुलेट से ही नहीं, जोश और जज्बे से भी हराया जा सकता है।
'वह मंजर आज भी फोटो फ्रेम की तरह फिट'
योगेंद्र यादव कहते हैं कि 26 जुलाई 1999 का वह मंजर आज भी उनके जहन में फोटो फ्रेम की तरह फिट है। जब जंग जीतने के बाद कारगिल की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था, तब वह अपना दर्द भूल गए थे और गर्व से सीना चौड़ा हो गया था। उन्होंने कहा कि हमारी सेना सर्वोच्च है। दुनिया की कोई सेना हमारा सामना नहीं कर सकती है।
Published on:
26 Jul 2022 11:09 am
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