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संयोजक हेमंत कुमार बताते हैं कि उनकी टीम 600 से अधिक ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं जिनके अपने नहीं मिले। करीब दस वर्ष पहले हेमंत ने देखा कि शिनाख्त न हो पाने वाले शवों के अंतिम संस्कार में पुलिस को भी कठिनाई होती है। जितना खर्चा मिलता है उसमें लकड़ियों का इंतजाम भी ठीक से नहीं हो पाता। ऐसा ही एक वाकया देख हेमंत ने यह जिम्मेदारी उठाने की ठान ली। हेमंत ने अपने मित्र स्वदेश, शैलेश, आशु, कृष्णा, सचिन, प्रशांत, विशाल, प्रखर, रजत और विकास के साथ मिलकर राष्ट्र चेतना मिशन नाम से संस्था बनाई और गैरों को मोक्ष दिलाने में जुट गए। हेमंत कहते हैं, शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति ही मोक्ष है। मोक्ष के लिए जरूरी है कि अंतिम संस्कार विधि-विधान से किया गया हो। इसलिए वह इस मिशन में जुटे हैं। 10 साल में 50 से अधिक लोगों की टीम हेमंत बताते हैं कि 10 वर्ष पूर्व खुर्जा में दो लोगों का अंतिम संस्कार उनकी टीम ने कराया। इसके बाद से मिशन में पदाधिकारियों की संख्या बढ़ती गई। पुलिस वाले भी अक्सर उन्हें खुद ही जानकारी देते हैं। अब टीम में 50 से अधिक पदाधिकारी हैं। खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश युवा हैं।
संस्था के संरक्षक सीए मनीष मांगलिक कहते हैं कि अंतिम संस्कार के लिए राष्ट्र चेतना मिशन किसी भी संस्था से कोई पैसा नहीं लेता। सभी पदाधिकारी आपस में सहयोग करते हैं। अंतिम संस्कार में लकड़ी, सामग्री और शव को श्मशान घाट तक पहुंचाने में तीन से चार हजार रुपये तक का खर्चा आता है।
10 कोरोना संक्रमितों का भी अंतिम संस्कार हेमंत बताते हैं कि कोरोना काल की पहली और दूसरी लहर के दौरान 10 से अधिक संक्रमितों का अंतिम संस्कार पदाधिकारियों ने पीपीई किट पहनकर किया। इनमें कई ऐसे थे जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं था। कई ऐसे थे जिनके परिजन दूर रहते थे। इनके करीबियों ने फोन पर बात कर अंतिम संस्कार का आग्रह किया तो मिशन की टीम पहुंच गई।
BY: KP Tripathi
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