
बूंदी. शहर में एक तरफ समाज में गणगौर पर्व की धूम है वहीं हाड़ा परिवार में आज भी गणगौर पर्व की खुशी का इंतजार है इस दिन आट होने से एक तबका आज भी गणगौर पर्व की खुशियों से दूर है अब इंतजार है इस दिन आट खुलने का ताकि प्राचीन परम्परा को एक बार फिर से जिंदा किया जा सके।
किसी जमाने में हाड़ा परिवार की गणगौर इतनी प्रसिद्ध थी कि जयपुर से पहले बूंदी का नाम इसमें शामिल होता था। लेकिन बूंदी नरेश महाराव राजा बुद्य सिंह के छोटे भाई की इस दिन दुर्घटना में मौत हो जाने के बाद आज भी गणगौर पर्व की आट कायम है।
हाडा परिवार की कहना है कि महाराव बुध सिंह के १६९५ से १७३८ जमाने में उनके भ्राता जोध सिंह राजपविार के सदस्यों के साथ एक बड़ी नौका में जैतसागर तालाब में सवार थे और उसी दौरान गणगौर की सवारी का मदमस्त हाथी तालाब में उतर गया क्योकि वो नौका भी हाथी की आकार सी थी।
हाथी ने नौका उलट दी। जिसमें गणगौर सहित राजपरिवार के सदस्य मारे गए बूंदी राज्य में गणगौर का त्यौहार एक लोकप्रिय पर्व था लेकिन उक्त मातम के बाद राजपरिवार ने इसको मनाना बंद कर दिया। लेकिन जिन्होनें घटना के पूर्व गणगौर की पूजा कर ली थी उन परिवार में बड़े उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है।
हाथियों की लड़ाई का रौमांच भी हुआ खत्म-
गणगौर के दिन हुए हादसे के बाद से हंसा देवी मंदिर के पास अगड़ में हाथियों की लड़ाई का रौमांच भी खत्म हो गए हाथी की वजह से हुए हादसे के बाद बूंदी के नरेश ने हाथियों की लड़ाई बंद करवा दी। जो एक मनोरंजन के रूप में हुआ करती थी।
Published on:
17 Mar 2018 07:24 pm
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