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महिला दिवस विशेष: जीवन के कुरुक्षेत्र में अकेली उतरी जमनाबाई…

खेत पर मिट्टी को उर्वर बना कर पैदावार लेने तक पसीना बहाती है, जमनाबाई

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International Women's Day story bundi

बूंदी.आम तौर पर ऐसा होता नहीं है कि खेत में हल अथवा ट्रेक्टर चलाती कोई महिला मिले,लेकिन बूंदी जिले में आपको ऐसी निराशा नहीं हो सकती है। बूंदी की 59 जमनाबाई अपने हाथों से अन्न पैदा कर रही है। मेहनत का हर काम वह खुद करती है और खेत पर मिट्टी को उर्वर बना कर पैदावार लेने तक पसीना बहाती है। हाथों में चूडियां,ओर काम बेहद सख्त। जमनाबाई की मेहनत के किस्से दूर दूर तक है।

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यह सख्त काम की एक वजह परिवार में मजबूरी भी है। २५ साल से जमनाबाई घर परिवार व बाहर की बागडोर खुद संभाल रही है। पति नाथुलाल कुमावत का स्वास्थय ख़राब रहने लगा उसके बाद मानो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दूसरों का पेट भरने वाले अन्नदाता के परिवार के खुद के पेट पालने का संकट पैदा हो गया। परिवार में ऐसा कोई नही जो खेती संभालता ऐसे में घर की इस बहु ने विरासत में मिले काम को संभालने का फैसला किया।

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उसने ट्रैक्टर की स्टीयरिंग संभाली और मेहनत शुरू की। उसके पसीना रंगलाया और खेतों में फसल लहलहाने लगी। सुबह ४ बजे से उसकी जिदंगी की शुरूआत होती हैैै। खेती बाड़ी के साथ सब्जी बेचने का काम भी करती है इसके लिए खुद जीप से जयपुर , उदयपुर ,भीलवाड़ा औश्र जोधपुर तक गाडी लेकर जाती है। जमनाबाई की ६ बेटिया है, दो बेटिया बीएड की तैयारी कर रही है, 6 बेटियों के हाथ पीले करवा दिए। उसका एक ही सपना है दोनो बेटिया अपने पैरो पर खड़ी होकर मजबूत बने। बेटे का ताना इस मां को भी झेलना पड़ा। ऐसे में अब अपनी दोनो बेटियों को शिक्षका बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर रही है। मां के इस संघर्ष भरी राह को लेकर दोनो बेटियों को भी नाज है।