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सात साल से कैद जिंदगी- मानवता की सभी हदें हुई पार, रस्से से बंधा मासूम बचपन

अपनी बला टालने को रस्से से बांधा मासूम बचपन.

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Life imprisoned for seven years - All the limits of humanity crossed

Innocent childhood imprisonment for seven years

बूंदी. अभी तक आपने खूंटे से बंधे पशु देखे होगें लेकिन बूंदी जिले के नैनवा उपखंड में ग्राम पंचायत मुयालय पर सात साल के मासूम के साथ पशुओ जैसा बर्ताव किया जा रहा है। परिवार इसे अपनी मजबूरी बता रहा है तो प्रशासन आंखे मूंदे बैठा है। खेलने कूदने के दिनों में इस मासूम की जिदंगी रस्से में जकड़ सी गई है। कुदरत का कहर भी ऐसा कि यह बच्चा अपनी पीड़ा भी बयां नही कर सकता है। परिवार तंगहाली के कारण मानसिक तौर पर विक्षिप्त अपने बेटे का इलाज करा पाने में सक्षम नहीं है। ७ साल से पशुओं की तरह यह मासूम पेड़ के खुटें से बंधा है।

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बूंदी जिले से ५० किलोमीटर दूर स्थित देई कस्बे में नीम के पेड़ के खूंटे से बंधा ७ वर्षीय मासूम चीनू अपनी मंदबुद्धिता का दंश झेल रहा है। मजदूर मां-बाप पर कुदरत की ऐसी मार पड़ी कि जन्म के साथ ही उनके बेटे को मानसिक विशिप्तता ने घेर लिया। आज बूढ़े दादा को अपने पौत्र का सहारा बनना पड़ रहा है। बुजूर्ग दादा राधेश्याम का किसी समय खुशी का ठिकाना नही था जब उनकी बगिया में कुदरत ने दो फूल दिए थे। जिन्हें बड़ा होता देख भविष्य के सपने बुनता था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके सपनों पर ऐसा वज्रपात हुआ कि सारे सपने चकनाचूर है। अपनी गोद में खिलाने वाले मासूम को रस्से से बंधा देख मन विचलित हो उठता है, लेकिन परिवार के सामने अपनी समस्या है, वे बताते है कि अगर बालक को रस्सी से नहीं बांधे तो वह घर से कोसो दूर ढूंढने पर भी नहीं मिलता है इसके चलते परिवारजन बालक को बांध देते हैं।

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डॉक्टर भी दे चुके जवाब-
पिता धनराज बताते है कि चीनू जब साल भर का हुआ तो उसमें कोई हरकत नही थी न वह कुछ बोल पाता जब कोटा जाकर चिकित्सकों से मिले तो उन्होनें पहले तो समय के साथ ठीक होने की बात कही लेकिन डेढ़ साल इलाज करवाने के बाद कोई सफलता हाथ नही लगी। खेती मजदूरी करने वाले माता पिता जनप्रतिनिधियों प्रशासन की सहायता की राह देख रहा है। वे रुंधे गले से बताते है की अपनी पूरी जमा पूंजी बेटे के इलाज में खर्च हो गई है। मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पोषण कर रहा है, लेकिन बढ़ती उम्र से शरीर साथ नहीं देता। साक्षरता के अभाव में समुचित लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। बूढ़े दादा और माँ बाप चीनू को बचपन से जंजीर में कैद कर ध्यान रखने पर मजबूर है। खाना खिलाने से लेकर उसकी दैनिक दिनचर्या का याल दादा करते है।

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मंदिर मस्जिदों के लगा रहे ढोक
मां विमला बताती है कि अब तो भगवान का ही सहारा है। इलाज के लिए मंदिर मज्जिद की ढोक लगा रहें है। कही कोई उ मीद की किरण नजर आए लेकिन कुदरत भी मानों इस परिवार से रूठी हो। पीडि़त का चाचा बद्रीलाल का कहना है कि परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हे इतना पैसा भी नही की इलाज करवा सके। वहीं सरकारी योजनाओं की अगर बात करें या सरकारी सहायता की अभी तक इस घर की दहलीज तक नहीं पहुंची है ना ही कोई योजना का लाभ मिला हे न ही कोई प्रमाण पत्र और ना ही कोई सहायता राशि इस बालक के नाम पर बनी है। जब इस मामले में सामाजिक एवं न्याय अधिकारिता विभाग अधिकारी से बात हुई तो उनका कहना है कि बच्चे को योजनाओं से जोडऩा चाहिए था लेकिन अब मामला सामने आने के बाद बच्चे के परिवार से मिलकर मानसिक विमंदित आश्रय के महेश गोस्वामी ने प्रवेश दिलाने के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी कर दी गई है। आश्रय में उसे खास ट्रेनिग दी जाएगी। सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाऐगें।

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अधिकारियों को कोसे या परिवारजनों को यह एक विडंबना है इस प्रकार बचपन अगर रस्सी से बंधे गुजर रहा है, यह अपने आप में झकझोर देने वाली दास्ता है। खैर जो भी हो देर आए दुरुस्त आए समाज कल्याण विभाग अधिकारी ने अब इस मामले में हर सं भव मदद करने की बात कही है |

हर संभव सहायता देंगे-
' ऐसे बच्चों के मामले में अगर परिवार जन घर में नही रखते है तो बूंदी में स्थापित मानसिक विमंदित गृह में प्रवेश दिया जाता है। ताकि उसका बेहतर इलाज हो सके। परिवारजनों से बात कर इसको इसके अनुकूल माहौल विद्यालयों में भेजने की कोशिश की जाएगी। उसका मेडिकल सर्टिफिकेट बनने के बाद पंजीकरण होगा। मानसिक विकलांग बच्चों के लिए पेंशन मिलती है। सविता कृष्णिया सहायक निदेशक