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मौन हो रही सुर-ताल की जुगलबंदी

सरकारी नितियों ने अब विद्यार्थियों को उनके ही प्रिय विषय से दूर कर दिया है। संगीत विभाग में लगा ताला, बरसों से खाली पड़े पद-

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Locked in the music department vacant posts for years

Music department in college

बूंदी- संगीत की पाठशाला में प्रवेश करते ही एक अलग ही अनुभूति होती है यहां बड़ी तल्लिनता के साथ गुरु-शिष्य सुर ताल की जुगलबंदी करते नजर आते है, लेकिन बूंदी के राजकीय महाविद्यालय की स्थिति इसके उलट है। कहने को राजस्थान में सबसे पहले का संचालित एक मात्र संगीत विभाग है जहां ब्यॉज संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते है। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेगें कि सरकारी नितियों ने अब विद्यार्थियों को उनके ही प्रिय विषय से दूर कर दिया है। महाविद्यालय में संगीत विभाग को संचालित करने के लिए कोई शिक्षक नही। पूर्व प्रोफेसर के सेवानिवृत्त होने के बाद यहां सालों से पद रिक्त है। तब से अब तक विभाग को एक शिक्षक तक नही मिला। उच्च शिक्षा में संगीत के प्रति उदासिन रवैये से स्नातकोत्तर करने वाले विद्यार्थी निराश हो रहें है।

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संगीत स्वाध्याय और आनंद का विषय है,परिवार की बदौलत इसी विषय में रूचि रही और संगीत की राह पकड़ ली। यही सपना बुना की इसी को प्रेरणा बनाकर जीवन के सुर साध लेगें, लेकिन अब इस विषय से मोह छूटता जा रहा है, यह कहना है बी.ए पार्ट फस्र्ट की स्टूडेन्ट खुशी जैन का। महाविद्यालय में लंबे समय से खाली पड़े शिक्षको के पदों ने विद्यार्थियों को संगीत विषय से दूरी बनाने पर मजबूर कर दिया है। कॉलेज में यह डिपार्टमेंट अब मात्र औपचारिक बनकर रह गया जहां परीक्षा आते ही सिर्फ सिलेबस को पुरा करने की होड़ दिखाई देती है। आधी-अधुरी तैयारियों के बीच विद्यार्थी खुद को उपेक्षित महसूस करते है। खुशी के साथ ऐसे कई विद्यार्थी है, जो संगीत विषय में कॅरियर बनाना चाहते है।

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ऐसे ही प्रोफेसर का ख्वाब संजोए झालावाड़ के अशोक मीणा घर से दूर यहां संगीत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए आए लेकिन अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहें है। बिते वर्षो से यह विभाग विद्यार्थियों को डिग्री देने की औपचारिकता मात्र बना है। यह आलम रहा तो बरसो ंसे संचालित विभाग मेें सुर-लय और ताल की जुगलबंदी मौन हो जाएगी। विभाग के प्रति रूचि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिक्षको की भर्ती तो दूर यहां संगीत विभाग का कक्ष जर्जर अवस्था में है। एक कक्ष में ही यूजी-पीजी के विद्यार्थियों की क्लास ली जाती है उसका भी समय तय नही। एक मात्र प्रोफेसर विजेन्द्र गौतम के भरोसे यह विभाग है उनके पास भी दौहरी जिम्मेदारिया है ऐसे में एक प्रोफेसर द्वारा प्रथम वर्ष से लेकर एम.ए अंतिम वर्ष के छात्रों को पढाना असम्भव है। यहां स्थायी रूप से तबला वादक भी नही। संगीत के साजो-सामान भी धूल खा रहें है। सरकार की ओर से इनकी कला की कद्र सिर्फ इतनी ही है कि इन्हें राष्ट्रीय पर्वो की तैयारियों के लिए जरूर याद किया जाता है।

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6 शिक्षक चाहिए एक विभाग के लिए-
क्वालिटी एजुकेशन के अनुसार विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए। एक विभाग के संचालन के लिए कम से कम एक प्रोफसर, २ ऐसासिएट, ३ असिसटेंट प्रोफेसर, अनिवार्य है। राजकीय महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी इस कदर है कि जल्द ही खाली पदों को नहीं भरा गया तो आगामी सत्र में विद्यार्थियों की संख्या नगण्य ही रह जाएगी।
कॉलेज में फिलहाल १२० से ज्यादा विद्यार्थी हैं जिनके भविष्य पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।

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संगीत विभाग प्रोफेसर विजेन्द्र गौतम का कहना है कि संगीत विभाग में पदो की कमी को लेकर उच्च अधिकारियों को अवगत करवाया गया है। विद्यार्थियों का सिलेबस कम्पलीट नही हो पाने से परेशानी तो आती है फिर भी मेनेज करते है। छात्र संघ अध्यक्ष भगवत मीणा ने बताया कि लड़को के लिए संगीत विषय से पीजी करने के लिए बूंदी राजकीय महाविद्यालय एक मात्र विकल्प है, ग्रामीण क्षेत्र ही नही दूरदराज से यहां छात्र संगीत की शिक्षा लेने आते है। कई विद्यार्थियों की आर्थिक स्थिति भी कमजोर है, जो निजी सेक्टर में रूपए खर्च नही कर सकते। व्याख्यता की कमी के चलते इन छात्रों का भविष्य अंधकार में है इसको लेकर प्राचार्य को भी अवगत करवाया है।