
कापरेन के निकट एक खेत में धान की पौध लगाती महिलाएं।
कापरेन. क्षेत्र में इस बार समय से दो सप्ताह पहले आए मानसून ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है। क्षेत्र में मानसून पूर्व शुरू बरसात लगातार जारी रहने से खेतों में नमी कम नहीं होने दे रही है और किसान समय पर बुवाई नहीं कर पा रहे हैं, जिसके चलते खेतों में बीज की बुवाई को किसानों की चिंता बढ़ रही है। वहीं समय निकलने पर बुवाई होने से पैदावार कम होने, फसल के नहीं पकने की आशंका ने किसानों की नींद उड़ा रखी है और किसान बेसब्री से बारिश के ठहरने और खेतों में पानी में कमी आने का इंतजार कर रहे हैं।
केशवरायपाटन और कापरेन क्षेत्र में धान का रकबा अधिक रहता है, वहीं लाखेरी व इंद्रगढ़ क्षेत्र में सोयाबीन व उड़द का रकबा अधिक रहता है। धान की पौध तैयार कर लगाने में अधिक लागत को देखते हुए इस बार अधिकतर किसान धान की सीधी बुवाई करना चाहते हैं। वहीं मौसम ने किसानों की गणित बिगाड़ कर रख दी और लगातार हो रही बारिश से किसानों को धान की सीधी बुवाई का मौका नहीं मिल रहा है। अब किसान बारिश का दौर थमने का इंतजार कर रहे हैं, जिससे समय पर बुवाई हो सके।
15 से 20 हजार हेक्टेयर है धान का रकबा
कृषि विभाग के अनुसार कापरेन और केशवरायपाटन क्षेत्र में धान की बपर बुवाई होती है। कापरेन व पाटन क्षेत्र में करीब 15 से 20 हजार हेक्टेयर में धान की बुवाई होती है। कुल रकबे का अस्सी फीसदी क्षेत्र है, वही, शेष में सोयाबीन व उड़द की बुवाई होती है। सिंचित क्षेत्र होने, सीपेज की समस्या और पानी की सुविधा देखते हुए धान में रुचि दिखाते है। वहीं क्षेत्र में सोयाबीन की पैदावार लगातार कम होने से धान किसानों की पहली पसंद है। केशवरायपाटन पंचायत समिति क्षेत्र में दस से ग्यारह हजार हेक्टेयर में उड़द और आठ से दस हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई होती है, जिसकी अधिकतर बुवाई लाखेरी और इंद्रगढ़ क्षेत्र में होती है। कृषि विभाग के सहायक कृषि अधिकारी पप्पू लाल मीणा ने बताया कि केशवरायपाटन व कापरेन क्षेत्र में पानी की सुविधा होने से अस्सी फीसदी धान होता है। वहीं इंद्रगढ़ व लाखेरी क्षेत्र में सोयाबीन व उड़द अधिक होता है।
अब ढूंढ रहे पौध
क्षेत्र के किसानों का कहना है कि धान की पौध तैयार कर लगाने में अधिक लागत को देखते हुए इस बार किसानों ने नर्सरी में पौध तैयार नहीं की और धान की सीधी बुवाई करने में रुचि दिखाई। पौध तैयार कर लगाने में सीधी बुआई से दोगुना खर्च आता है, वहीं एक माह अधिक मेहनत करनी पड़ती है। धान की सीधी बुवाई में समय और मेहनत दोनों बच जाते हैं और लागत भी कम आती है। किसानों का कहना है कि पौध रोपण और सीधी बुवाई दोनों तरह से तैयार फसल में पैदावार बराबर हो जाती है, जिसे देखते हुए अधिकतर किसानों ने इस बार नर्सरी पौध तैयार नहीं की। इस बार मौसम ने किसानों को दगा दे दिया और लगातार बारिश ने सीधी बुवाई का मौका नहीं दिया। बुवाई का समय निकलते देख अब किसान पौध की नर्सरी तलाश रहे हैं।
धान का बीज डाल रहे
किसान खेती के नए तरीके अपनाते हुए बारिश अधिक होने पर गरड कर धान का बीज डाल रहे हैं। किसानों का कहना है कि समय पर बुवाई होने पर ही धान की उपज मिल सकती है। किसानों का कहना है कि पौध की मांग बढ़ने से इस बार पौध की कीमत भी बढ़ गई है,जिन किसानों ने आवश्यकता से अधिक पौध तैयार की वह अच्छी कीमत वसूल रहे हैं।
तो बढ़ेगा अन्य फसलों का रकबा
किसानों का कहना है कि 15 जुलाई तक धान की बुवाई का समय रहता है और क्षेत्र के कई किसान अभी भी 15 जुताई तक बारिश थमने और खेतों में नमी कम होकर ट्रैक्टर चलने का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद भी बारिश रही तो किसान सोयाबीन व उड़द की बुवाई कर सकते हैं, जिससे धान का रकबा कम होकर अन्य फसलों का रकबा बढने की उमीद है।
इस बार मानसून पिछले वर्ष से 15 दिन पहले आ गया। लगातार बारिश होने से कई किसान धान और सोयाबीन की बुवाई नहीं कर पाए है। बारिश रुकने बाद एक सप्ताह के अंतराल में किसान धान की बुवाई करेंगे। 15 से 20 जुलाई तक धान की बुवाई हो सकती है। कापरेन व पाटन क्षेत्र में इस बार अस्सी फीसदी रकबे में धान होने की उम्मीद है।
पप्पू लाल मीणा, सहायक कृषि अधिकारी, केशवरायपाटन
Published on:
08 Jul 2025 06:48 pm
बड़ी खबरें
View Allबूंदी
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
