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Mumtaj – ताजमहल की बुरहानपुर की मिट्टी से जुड़ी हैं कडिय़ां

मुमताज की पुण्यतिथि पर विशेष389 साल पहले बुरहानपुर में मुमताज ने तोड़ा था दम

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mumtaj tomb burhanpur

यहां दफनाया था मुमताज को।

बुरहानपुर. ये तो सब जानते हैं कि दुनिया का आठवां अजूबा आगरा का ताजमहल शाहजहां और मुमताज के प्यार की दास्तां बयां करता है, जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल के लिए बनवाया था। सबको ये भी पता है कि इसी ताजमहल में मुमताज की कब्र बनी है, जहां उसे दफनाया गया था। लेकिन अधिकांश लोग नहीं जानते कि मुमताज ने अंतिम सांस बुरहानपुर में ली थी, और छह माह तक बुरहानपुर में दफनाया गया था। इसी की याद में शहर में 7 जून को पिछले 50 वर्षों से मुमताज महल फेस्टिवल मनाते आ रहे हैं, जो कोरोना संक्रमण के कारण पहली बार नहीं मनेगा।

कोरोना काल के कारण बुरहानपुर में मुमताज की यादें ताजा नहीं होगी। हर साल आसिफ प्रोडक्शन भारत की ओर से आयोजित होने वाले कार्यक्रम इस साल नहीं होंगे। केवल आहुखाना जाकर उस स्थान पर फूल चढ़ाए जाएंगे, जहां मुमताज को दफनाया गया था। आयोजनकर्ता शहजादा आसीफ खान ने बताया कि यह मुमताज महल फेस्टिवल का 51वां साल था, लेकिन इस साल कार्यक्रम नहीं किए जा रहे हैं।

ये है इतिहास
मुमताज का का जन्म अप्रैल सन् 1593 में हुआ था। मुमताज की सगाई 14 साल की उम्र में ही शाहजहां के साथ कर दी गई। सगाई के पांच साल बाद 10 मई सन् 1612 को शाहजहां और मुमताज का निकाह हो गया और मुमताज शाहजहां की तीसरी और पसंदीदा बेगम बनी। इतिहासकारों की मानें तो सन् 1631 में शाहजहां मुमताज को लेकर बुरहानपुर आ गया था, उस वक्त मुमताज गर्भवती थी, वह अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देने वाली थी। 7 जून 1631 में इसी बच्चे को जन्म देने के दौरान उनकी मौत हो गई, उन्हें वहीं आहुखाना के बाग में ही दफना दिया गया। इसके बाद उन्हें आगरा में ले जाया गया था, जहां ताजमहल में दफनाया गया।

बुरहानपुर में ही असली कब्र
शहजादा आसीफ बताते हैं कि बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली ताप्ती नदी के उस पर जैनाबाद में फारुकी काल जो कभी बादशाहों की शिकारगाह आहुखाना हुआ करता था। दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ने इस जगह को अपने पसंद के अनुरूप महल, हौज, बाग-बगीचों के बीच नहरों का निर्माण करवाया, लेकिन 8 अप्रैल 1605 को सूबेदार की मौत हो गई। इसके बाद आहुखाना उजडऩे लगा। जहांगीर के शासन काल में अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर आहुखाना को फिर से ईरानी बाग के रूप में विकसित कराया। इस बाग का नाम शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर रखा गया।

कार्यक्रम में ये आ चुके बुरहानपुर
शहजादा आसीफ बताते हैं कि मुमताज की याद में हर साल आयोजन होता है। इसमें कई फिल्मी हस्तियां आती हैं। मुशायरा और कार्यशाला होती है। यहां पर ताजमहल फिल्म बनाने वाले अकबर खान, वक्फ बोर्ड के चेयररमेन अवीश कुरैशी, शायर बशीर बदर, उर्दू एकेडमी मप्र की चेयरमेन नुसरत मेहंदी, रेहाना सुल्ताना, जॉनी वॉकर, रजा मुराद आदि आ चुके हैं।