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म्यूचुअल फंड्स को इन पैरामीटर्स पर परखे, नहीं तो होगा बढ़ा घाटा

म्यूचुअल फंड्स निवेशकों में पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरा है। निवेशकों को लुभाने के लिए बाजार में 1,461 म्‍यूचुअल फंड स्कीम्स मौजूद हैं। इतनी सारी स्कीम्स में से सही और बेहतर रिटर्न देना वाला फंड चुनना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में बंपर फायदा कमाने और नुकसान से बचने के लिए इन मेट्रिक्स को करें फॉलो।

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Mutual funds

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मुंबई। म्यूचुअल फंड्स निवेशकों में पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरा है। इसमें छोटी-छोटी बचत करके निवेशक लंबी अवधि में मोटी कमाई कर सकते हैं। निवेशकों के लिए फिलहाल 1,461 म्‍यूचुअल फंड स्कीम्स मौजूद हैं, जिनमें से सही और बेहतर रिटर्न देना वाला फंड चुनना मुश्किल होने के साथ नए निवेशकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ऐसे में स्कीम्स को परखने के लिए मानक मौजूद हैं, जो रिस्क कम करने के साथ निवेश की राह को भी आसान बना सकते हैं।

रिटर्न मेट्रिक्स
1. कुल रिटर्न - इसका मतलब है कि निवेशक ने फंड पर कुल कितना रिटर्न कमाया है। यह फंड की खरीद-बिक्री पर निर्भर करता है। हालांकि इसमें निवेश की अवधि और कंपाउंडिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिसके चलते रिटर्न देने के बावजूद फंड के प्रदर्शन को समझना मुश्किल होता है।

2. ट्रेलिंग सीएजीआर - अगर लंबी अवधि में निवेश की प्लानिंग कर रहें हैं तो रिटर्न का आकलन इससे कर सकते हैं। अवधि के साथ यह फंड की सालाना ग्रोथ पर फोकस करते हैं, जो कुल रिटर्न से बेहतर निष्कर्ष भी प्रदान कर सकता है। जैसे कि किसी लार्ज कैप फंड का कुल रिटर्न 191% है, जो आकर्षक है लेकिन फंड की 10 वर्षों की ग्रोथ पर ध्यान दें तो औसतन रिटर्न सिर्फ 11% है, जो बेंचमार्क से कम है। यह रिटर्न देने की धीमी ग्रोथ को दर्शाता है।

3. रोलिंग रिटर्न सीएजीआर - रोलिंग रिटर्न सभी टाइमस्केल में फंड के प्रदर्शन को मापते हैं। इससे किसी भी अवधि के प्वाइंट-टू-प्वाइंट रिटर्न का औसत निकाल जा सकता है, जिससे निवेशकों को समय-समय पर फंड का प्रदर्शन जानने में आसानी होती है।

4. एसआइपी - यह निवेशकों में सबसे पॉपुलर है। निवेशक हर महीने नियमित तौर पर फंड में निवेश करते हैं। जब निवेशक फंड से निवेश का कुछ हिस्सा निकालते हैं या फंड में एसआइपी को बंद कर देते हैं, तो ऐसे में रिटर्न की गणना करने के लिए एक्सआईआरआर (एक्सटेंडेड इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न) से रिटर्न का आकलन किया जाता है, जो विभिन्न अवधि के दौरान किए गए सभी निवेशों और निकासी के आधार पर सालाना रिटर्न पर फोकस करता है। इससे निवेशक को कुल निवेश की मौजूदा वैल्यू का पता चल सकता है।

रिस्क मेट्रिक्स

1. शार्पे रेश्यो - निवेशक जितनी बार रिस्क लेते हैं, उसपर कमाए गए मुनाफे का आकलन शार्पे रेश्यो कर सकते हैं। जितना ज्यादा शार्पे रेश्यो होगा, उतना बेहतर फंड का प्रदर्शन रहेगा। जैसे किसी स्मॉल कैप फंड, सी ने निवेशकों को 3 साल में 42% रिटर्न दिया, वहीं डी ने 46% रिटर्न दिया, जो सी फंड के मुकाबले ज्यादा है। लेकिन शार्पे रेश्यो पर गौर करें तो सी का 0.57% रहा, वहीं डी शार्पे रेशियो 0.50% रहा। जो डी से अधिक है। ऐसे में सी ने कम रिटर्न देने के बावजूद सी फंड में रिस्क के मुकाबले निवेशकों को अधिक मुनाफा दिया है। यह फंड में तेजी व गिरावट के दौरान होने वाले उतार-चढ़ाव को ट्रैक करता है।

2. सॉर्टिनो रेश्यो - यह बाजार में गरिवाट के दौरान फंड के रिटर्न में उतार-चढ़ाव पर पर फोकस करता है। इससे निवेश जांच सकते हैं कि कम जोखिम लेकर फंड से कितना मुनाफा कमया जा सकता है। जिनता सॉर्टिनो रेश्यो ज्यादा होता उतना फंड के लिए बेहतर माना जाता है।

3. डाउनसाइड कैप्चर - यह बाजार में गिरावट के समय बेंचमार्क के मुकाबले म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन पर फोकस करता है। गिरावट के समय जिन म्यूचुअल फंड का डाउनसाइड कैप्चर रेश्यो 100 से नीचे रहता है, उन फंड का प्रदर्शन बेहतर माना जाता है।

म्यूचुअल फंड्स के अन्य खास मेट्रिक्स

1. पोर्टफोलियो टर्नओवर - यह फंड मैनेजर के फंड्स की खरीददारी-बिक्री का आकलन करता है। अगर फंड मैनेजर लगातार फंड की खरीद-बिक्री करता है तब इसे हाई पोर्टफोलियो टर्नओवर मना जाता है, जिससे एक्सपेंस रेश्यो बढ़ता है। वहीं मैनेजर लंबी अवधि में फंड को खरीदता-बेचता है, तो वह फंड को खरीदने और होल्ड करने की मजबूत रणनीति को दर्शाता है। इसलिए निवेशक को ऐसे फंड मैनेजर के जरिए निवेश करना चाहिए जो रिस्क का मूल्यांकन कर सही फंड में निवेश करें।

2. एक्सपेंस रेश्यो - एक्सपेंस रेश्यो को फंड मैनेजमेंट चार्जेस भी कहा जाता है। जितनी निवेश की लागत कम होगी उतना मुनाफा बढ़ेगा।

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