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सरकार के प्रयास फेल, आटे-दाल के भाव बता रहे हैं महंगाई के तीखे तेवर

इस साल मई में 10.6 करोड़ टन के कम उत्पादन के बीच गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जब 6 महीनों (अप्रैल-सितंबर के बीच) में वास्तविक शिपमेंट पिछले साल की तुलना में दोगुना हो गया था। इसके बाद भी आ गेहूं के दाम बढ़ते रहे।

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सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद यूक्रेन-रशिया युद्ध की मद्देनजर गेहूं, आट और दाल के दामों पर लगाम लगती नहीं दिख रही है। खुदरा बाजार में पिछले दो साल में गेहूं का आटा 18% से अधिक महंगा हुआ है और इसके दाम अब बढ़कर चावल (37.96 रुपये प्रति किलोग्राम) के लगभग बराबर हो गए हैं। चीनी की कीमतों को टक्कर (42.69 रुपये प्रति किलोग्राम) दे रहे है। उपभोक्ता मंत्रालय के पोर्टल पर 22 नवंबर को पूरे भारत में गेहूं के आटे का औसत खुदरा मूल्य 36.98 रुपये प्रति किलो था। यह दो साल पहले की तुलना में 18.71 प्रतिशत रुपये प्रति किलोग्राम था।


इससे आटे की कीमतों में भी बढ़ी तेजी आई है। दो सालों के दौरान गेहूं का खुदरा मूल्य 9.47% बढ़कर 29.02 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 31.77 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।


इस साल मई में 10.6 करोड़ टन के कम उत्पादन के बीच गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जब 6 महीनों (अप्रैल-सितंबर के बीच) में वास्तविक शिपमेंट पिछले साल की तुलना में दोगुना हो गया था। इसके बाद भी आ गेहूं के दाम बढ़ते रहे।


साल 2022 के लिए रबी फसल की बुवाई के आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ है कि भारतीय किसानों ने मसूर और दालों की तुलना में गेहूं-चावल की बुवाई अधिक की है। अनियमित मॉनसून के बावजूद रबी की कुल बुवाई पिछले साल से 7 प्रतिशत अधिक है। इसमें भी गेहूं बुआई में करीब 15 फीसदी की बढ़ोतरी है। इससे सरकार को कुछ राहत मिल सकती है, क्योंकि कोविड काल के दौरान भारत के बफर स्टॉक में पिछले साल के मुकाबले 49.9 फीसदी की गिरावट आई है।