
Rupee hits an all-time low: आज 3 फरवरी सोमवार के दिन भारतीय रुपए में अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया, जब यह पहली बार 87 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर (Rupee hits an all-time low) के पार चला गया है। शुरुआती कारोबार में ही रुपया 87.07 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। इस तेज गिरावट के पीछे मुख्य रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तीन कार्यकारी आदेशों को जिम्मेदार माना जा रहा है, जो उन्होंने सप्ताहांत में जारी किए थे।
रुपये की इस ऐतिहासिक गिरावट (Rupee hits an all-time low) के पीछे वैश्विक व्यापार तनाव और अमेरिकी डॉलर की मजबूती बड़ी वजहें हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा मेक्सिको और कनाडा से आयातित वस्तुओं पर 25% टैरिफ और चीन से आने वाले उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाने के फैसले ने वैश्विक मुद्रा बाजारों में हलचल मचा दी है। इन नए व्यापार प्रतिबंधों के चलते अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है, जिससे भारतीय रुपये सहित एशियाई मुद्राओं पर दबाव बढ़ा है।
सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपये में 0.5% की गिरावट दर्ज (Rupee hits an all-time low) की गई, और बाजार के जानकारों का मानना है कि यह गिरावट दिनभर जारी रह सकती है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा की कमजोरी का असर भारतीय शेयर बाजार और विदेशी निवेशकों की धारणा पर भी देखने को मिल सकता है। इस दौरान डॉलर इंडेक्स (जो छह प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती को दर्शाता है) 0.3% बढ़कर 109.8 तक पहुंच गया, जिससे डॉलर को और मजबूती मिली। इसके अलावा, चीनी युआन भी 0.5% गिरकर 7.35 प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया। भारतीय रुपये और चीनी युआन का आमतौर पर एक समान रुझान रहता है, इसलिए युआन में कमजोरी (Rupee hits an all-time low) से रुपये पर भी दबाव बना।
रुपये की गिरावट (Rupee hits an all-time low) भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर सकती है। आयात महंगा होने से व्यापार घाटा बढ़ सकता है और महंगाई पर असर पड़ सकता है। आइए देखें कि इससे किन क्षेत्रों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा:
भारत अपनी 80% कच्चे तेल की जरूरत आयात से पूरा करता है। रुपये की कमजोरी के चलते तेल आयात महंगा होगा, जिससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे आम जनता पर सीधा असर पड़ेगा और महंगाई में इजाफा हो सकता है।
रुपये में गिरावट से विदेशी निवेशक भारत में निवेश को लेकर सतर्क हो सकते हैं। एफआईआई (फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स) और एफडीआई (फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट) का प्रवाह प्रभावित हो सकता है, जिससे शेयर बाजार में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा।
जो कंपनियां कच्चा माल विदेशों से मंगाती हैं, उनके लिए उत्पादन लागत बढ़ जाएगी। इससे आईटी, ऑटोमोबाइल और फार्मा सेक्टर की कंपनियों पर असर पड़ सकता है।
जो भारतीय छात्र अमेरिका, कनाडा, यूरोप में पढ़ाई कर रहे हैं या वहां जाने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए शिक्षा महंगी हो जाएगी। वहीं, विदेश यात्रा भी महंगी पड़ेगी क्योंकि टिकट और होटल की लागत डॉलर में होती है।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर अमेरिकी डॉलर मजबूत बना रहता है और व्यापार युद्ध की स्थिति बिगड़ती है, तो रुपया और गिर सकता है। बाजार के जानकारों के अनुसार, आने वाले हफ्तों में रुपया 87.50 से 88 के स्तर तक जा सकता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये को स्थिर करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है। केंद्रीय बैंक डॉलर बेचकर रुपये की गिरावट (Rupee hits an all-time low) को थामने की कोशिश कर सकता है, लेकिन इसके बावजूद वैश्विक दबाव के चलते रुपये पर प्रेशर बना रहेगा।
वित्त मंत्रालय और आरबीआई की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, सरकार रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए कुछ नीतिगत फैसले ले सकती है। विदेशी निवेश को आकर्षित करने, निर्यात को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।
Updated on:
03 Feb 2025 12:06 pm
Published on:
03 Feb 2025 11:36 am
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