इसमें मोटर वाहन के विभिन्न हिस्सों पर एक पॉलीमर लेप लगाया जाता है, जिसमें यूनिक कोड छिपा होता है। गाड़ी पर इस कोड को लेजर लाइट वाली टार्च की मदद से पढ़ सकते हैं। कोड का पता चलते ही सेंट्रल सर्वर से गाड़ी के मालिक का और रजिस्ट्री वाली जगह का पता किया जा सकता है।
500 रूपए में लग जाएगा कोड-
सरकार के मुताबिक यह तकनीक बहुत खर्चीली नहीं है। यदि किसी कार में 15,000 जगहों पर कोड अंकित करना हो तो उसका खर्च महज सात से आठ डॉलर का आता है यानी पांच सौ रुपये में यह काम हो जाएगा। यदि किसी मोटरसाइकिल में कोड डालना हो, तो उसमें कार के मुकाबले बहुत कम जगह कोड डालना होगा, इसलिए खर्च कार के मुकाबले काफी कम हो जाएगा। यह तकनीक ऐसी है कि यदि कार में बम विस्फोट भी हो जाए, तो यह कोड नहीं मिटेगा।
नकली पुर्जों की भी होगी पहचान- इस तकनीक से कम लागत में नकली पुर्जों की पहचान आसानी से हो सकेगी।
बीमा कंपनियों को भी होगा फायदा- इस टेक्निक के लागू होने से पुलिस ही नहीं बीमा कंपनियों को भी फायदा होगा।
फिलहाल इस टेक्नोलॉजी को हमारे देश में लागू कराने के लिए आम जनता से प्रतिक्रिया मांगी जा रही है। मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर इस मसौदे को जनता की राय जानने के लिए अपलोड किया है। प्रतिक्रिया आने के बाद इस पर शीघ्र ही फैसला लिया जा सकता है। दुनिया के कई देशों में ये टेक्नोलॉजी को पहले से ही चल रही है।