
चंदौली. ऐसी मान्यता है कि जब महर्षि वेदव्यास जी काशी से नाराज हो कर गंगा पार आज के चंदौली जिले में आये थे और दूसरी काशी बसाने जा रहे थे। इसके बाद भगवान शिव ने गणेश को भेज कर उन्हें इन शर्तो पर मनाया था कि बिना व्यास जी के दर्शन किये काशी का पुण्य नहीं मिलेगा। ये जगह व्यास नगर कही जाती है। यहां वेदव्यास जी का अति प्राचीन मंदिर भी स्थित है।

मंदिर के पुजारी स्वतंत्र कुमार तिवारी ने बताया कि महाकाव्य युग की महान विभूति व पुराणों तथा महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 300 ई. पूर्व में हुआ था। वेदांत दर्शन, अद्वैतवाद के संस्थापक वेदव्यास का पूरा नाम श्री कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास था और ये ऋषि पराशर के पुत्र थे।

काशी से पांच मील कि दूरी पर चन्दौली जिले के व्यास नगर में वेदव्यास का अति प्राचीन मंदिर है जहां माघ महीने में मेला मेला लगता है। साथ ही गुरु पूर्णिमा का प्रसिद्ध पर्व व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। व्यास जी के बारे में स्कंद पुराण के काशी खंड में लिखी कहानियों के अनुसार वेद व्यास ने सुना था कि काशी में कोई भी भूखा नहीं सोता है।

यही जानने के लिए एक बार व्यास जी काशी आये और उन्हें दो तीन दिनों तक भूके रहना पड़ा। इस बाट की जानकारी होते ही भोले नाथ ने देवी अन्नपूर्णा को वेश बदल कर व्यास जी के पास भेजा। भोले नाथ की इस चाल को व्यास जी समझ गए और उन्होंने क्रोधित होकर काशी को श्राप दे दिया और काशी से पांच मील कि दूरी पर दूसरी काशी बसाने की ठान ली।

जब यह बात भोले नाथ को पता चला तो उन्होंने व्यास जी की सेवा के बहाने गणेश जी को भेजा और उन्हें प्रसन्न कर काशी की श्राप से मुक्ति का उपाय पूछने को कहा। गणेश जी ने व्यास जी की खूब सेवा की। एक दिन जब व्यास जी ने प्रसन्न होकर गणेश जी को वरदान मांगने को कहा। उन्होंने काशी को श्राप से मुक्त करने का वर मांग लिया।

जिसपर व्यास जी ने काशी को श्राप से मुक्त करते हुवे कहा कि भक्तों को काशी का पुन्य तभी मिलेगा जब तक व्यास मंदिर में दर्शन न कर ले। तभी से यह मान्यता चली आ रही है इसका प्रमाण आज भी व्यास महोत्सव में देखने को मिलता है जिसमे महोत्सव कि शुरुआत व्यास मंदिर से ही शुरू करने कि परंपरा चली आ रही है।