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जलवायु परिवर्तन और खराब मिट्टी से 2050 तक 32 प्रतिशत सदाबहार बन हो सकते हैं नष्ट

सदाबहार और पर्णपाती वन प्रकारों में अधिकतम कमी

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जलवायु परिवर्तन और खराब मिट्टी से 2050 तक 32 प्रतिशत सदाबहार बन हो सकते हैं नष्ट

जलवायु परिवर्तन और खराब मिट्टी से 2050 तक 32 प्रतिशत सदाबहार बन हो सकते हैं नष्ट


चेन्नई. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बेहद खराब मिट्टी की उर्वरता के कारण राज्य 2050 तक 32 प्रतिशत सदाबहार वन खो सकता है। अन्ना विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डिजास्टर मैनेजमेंट (सीसीसीडीएम) द्वारा किए गए अपनी तरह के पहले अध्ययन और जलवायु मॉडलिंग में यह निष्कर्ष सामने आया। तमिलनाडु के वानिकी क्षेत्र में जलवायु जोखिम आकलन शीर्षक वाला अध्ययन वरिष्ठ वन अधिकारियों के सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया।

बेसलाइन डेटा (1985-2014) से पता चलता है कि राज्य में 1,881 वर्ग किमी सदाबहार वन, 13,394 वर्ग किमी पर्णपाती वन और 4,292 वर्ग किमी कांटेदार जंगल हैं।सीसीसीडीएम के एमेरिटस प्रोफेसर और जलवायु परिवर्तन पर टीएन गवर्निंग काउंसिल के सदस्य ए रामचंद्रन ने कहा बढ़ते तापमान और बारिश के दिनों में कमी जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण, 2021-2050 की अवधि के दौरान सदाबहार वन क्षेत्र में 32 प्रतिशत, पर्णपाती वन में 18 प्रतिशत की कमी होगी।

विश्लेषण से पता चलता है कि निकट भविष्य में सदाबहार और पर्णपाती वन प्रकारों में अधिकतम कमी के साथ नीलगिरी जिला सबसे असुरक्षित है। सदाबहार वन प्रकारों के लिए कम उपयुक्तता दिखाने वाले अन्य जिले डिंडीगुल, कोयंबत्तूर, कन्याकुमारी, तिरुनेलवेली और तिरुपुर हैं। सदाबहार वन प्रकार के लिए आवास उपयुक्तता में सबसे कम कमी वाला जिला कृष्णगिरि है। इसी प्रकार पूर्वी घाट में सेलम सबसे असुरक्षित है, जहां निकट भविष्य में सदाबहार वनों की आवास उपयुक्तता में उल्लेखनीय कमी आई है, जिसके बाद नमक्कल है।लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई ऐतिहासिक भूल

सीसीसीडीएम के निदेशक कुरियन जोसेफ ने कहा कि लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई जैसी ऐतिहासिक भूलों के कारण परिवर्तन होते हैं। इस बीच सीसीसीडीएम के जलवायु स्टूडियो ने वर्तमान मृदा कार्बनिक कार्बन (एसओसी) का आकलन करने के लिए वन क्षेत्रों में 560 सावधानीपूर्वक चयनित स्थानों में मिट्टी का विश्लेषण भी किया है जिसका वन पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य से सीधा संबंध है।मृदा कार्बनिक कार्बन में कमी

यह पाया गया कि मौजूदा एसओसी बेहद कम 0.8 प्रतिशत थी। वन उत्पादन को समर्थन देने के लिए न्यूनतम आवश्यकता 1 प्रतिशत है। प्रत्येक जिले के लिए मिट्टी की स्थिति पर एक वेब एप्लिकेशन विकसित करने वाले रामचंद्रन ने बताया कुछ क्षेत्रों में शून्य कार्बनिक कार्बन के कारण मिट्टी सचमुच मृत हो गई है। हरित आवरण में सुधार के लिए वन विभाग के सभी वनरोपण प्रयास विफल हो जाएंगे।मिट्टी को उर्वर करने की आवश्यकता

सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन में वर्तमान में एसओसी मूल्य 5 से 15 प्रतिशत के बीच है, जो स्वस्थ है। हमारा ध्यान कांटेदार और पर्णपाती वन क्षेत्रों पर होना चाहिए जो क्रमशः 10.49 लाख और 5.31 लाख हेक्टेयर में फैले हुए हैं। इनमें से 3.16 लाख हेक्टेयर अत्यधिक निम्नीकृत है। वन विभाग को इन ख़राब क्षेत्रों में मिट्टी को तत्काल समृद्ध करने की आवश्यकता है, जिसमें 59,891 टन खाद की आवश्यकता है।मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन की कमी

मुख्य वन्यजीव वार्डन श्रीनिवास आर रेड्डी ने स्वीकार किया कि मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन की कमी हो गई है और इस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। पीसीसीएफ और एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्डलाइफ साइंसेज के निदेशक ए उदयन ने कहा कि सरकार को मिट्टी की रक्षा के लिए कानून लाने के बारे में सोचना होगा। बहुत से लोग नहीं जानते कि मिट्टी सदाबहार वनों की तुलना में अधिक कार्बन संग्रहीत करती है।