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स्वयं का शांतिमय होना घर, समाज और अध्यात्म की सबसे बड़ी सेवा

राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि स्वयं का शांतिमय होना घर, समाज और अध्यात्म की सबसे बड़ी सेवा है। जो स्वयं शांतिमय होते हैं, वही दूसरों को शांति

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Being self sufficient is the biggest service to home, society and spirituality

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बालछेट्टीछत्रम।राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि स्वयं का शांतिमय होना घर, समाज और अध्यात्म की सबसे बड़ी सेवा है। जो स्वयं शांतिमय होते हैं, वही दूसरों को शांति का सुकून दे सकते हैं। जो अपने अन्तर्मन को शांतिमय और आनंदमय बनाते हैं, वे कमल के फूल की तरह खिल उठते हैं।

ऐसे लोग जहां भी रहते हैं, उनसे शांति और आनंद का स्वर्ग ही स्थापित होता है। उन्होंने कहा कि यदि आप शांति-पथ का आनंद लेना चाहते हैं, तो कृपया हर रोज सुबह-शाम 20 मिनट तक शांत मंद श्वास लेते हुए उनका ध्यान कीजिए। यह धारणा रखिए कि मैं श्वास को शांत करते हुए अपने अन्तर्मन और उसकी उत्तेजनाओं को शांतिमय बना रहा हूं। शुरू में भले ही उचाट लगे, पर ज्यों-ज्यों शांति का बोध और लक्ष्य प्रगाढ़ होता जाएगा। आप अपने अस्तित्व से रूबरू होते जाएंगे।

संतप्रवर सोमवार को बालछेट्टीछत्रम स्थित जैन उपाश्रय में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में सैकड़ों श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हर श्वास अद्भुत है और हर सुबह नई जिंदगी की शुरुआत है। आप अपनी हर श्वास और हर कर्म का आनंद लीजिए। आपके जीवन में शांति का सौन्दर्य बढ़ता जाएगा। उन्होंने कहा कि शांति के लिए महज एकांत मत ढूंढते रहिए, वरन् अपने भीतर एकांत का निर्माण कीजिए। स्वयं के एकत्व का बोध ही जीवन का सच्चा एकांत है। जीवन में सदा मुस्कुराइए। उन्होंने कहा कि जीवन में सदा मुस्कुराइए किसी बुद्ध या अमृत पुरुष की तरह।


एक मुस्कुराहट सौ तनावों को दूर करती है और वातावरण को खुशनुमा बनाती है। आप पहले मुस्कुराइए, फिर देखिए इसका कैसा जादुई प्रभाव पड़ता है। याद रखिए दिमाग में विषाद का चैनल चलाएंगे तो हम विषादग्रस्त होंगे और शांति का चैनल चलाएंगे तो हम अपनी जीवंतता और अस्तित्वता को उपलब्ध होंगे। उन्होंने अन्य मंत्रों में कहा कि आप आध्यात्मिक रूप से जाग्रत होइए, सम्यक् ज्ञान धारण कीजिए और सबसे प्रेम करने की

दिव्य प्रकृति के मालिक बनिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप निश्चय ही इंसान नहीं है। तो फिर क्या भगवान हैं। जब संतप्रवर ने जिया कब तक उलझेगा संकल्प-विकल्पों में, कब तक यूं उलझेगा संसार के रंगों में... गीत सुनाया तो श्रद्धालु आनंद विभोर हो उठे। इससे पूर्व राष्ट्र-संत ललितप्रभ सागर महाराज, संत चन्द्रप्रभ महाराज और डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर जी महाराज के जैन उपाश्रय पहुंचने पर सकल जैन संघ द्वारा बधावणा किया गया। कार्यक्रम में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।